आठ वर्षों तक भारतीय सेना में सैनिक के रूप में देश की सेवा करने वाले रणजीतसिंह सारण अब समाजसेवा के क्षेत्र में प्रेरणादायी उदाहरण पेश कर रहे हैं। शिक्षक के रूप में कार्यरत सारण पिछले दो वर्षों से अनाथ और जरूरतमंद बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा उपलब्ध कराने के साथ-साथ उनके रहने और खाने की व्यवस्था भी कर रहे हैं।
सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद रणजीतसिंह ने युवाओं को सेना भर्ती की तैयारी करवाने के उद्देश्य से जोधपुर रोड पर एकेडमी शुरू की थी। उनकी यह एकेडमी कई युवाओं के लिए मार्गदर्शन और प्रेरणा का केंद्र बनी। लेकिन कोरोना महामारी के दौरान परिस्थितियां बदल गईं। उन्हें जानकारी मिली कि कुछ बच्चे महामारी में अनाथ हो गए हैं और उनकी पढ़ाई अधूरी छूट रही है। इसी पल से उन्होंने ठान लिया कि इन बच्चों की शिक्षा और जीवन दोनों को संभालने की जिम्मेदारी वे खुद लेंगे।
उन्होंने अपनी एकेडमी के दरवाजे ऐसे बच्चों के लिए खोल दिए। यहां न केवल उन्हें पढ़ाई के अवसर मिले, बल्कि रहने और भोजन की व्यवस्था भी की गई। इन सभी खर्चों को रणजीतसिंह ने अपनी व्यक्तिगत आय और संसाधनों से वहन किया। उनकी इस पहल ने कई बच्चों की जिंदगी बदल दी, जो शिक्षा और सहारे से वंचित हो सकते थे।
शिक्षक सारण का मानना है कि शिक्षा ही वह शक्ति है जो किसी भी बच्चे का जीवन बदल सकती है। उनका कहना है, “मैंने सेना में रहते हुए देश की सेवा की, अब मेरा कर्तव्य है कि समाज के उन बच्चों की सेवा करूँ जिनके पास सहारा नहीं है। हर बच्चा पढ़ेगा और आगे बढ़ेगा, तभी समाज सशक्त बनेगा।”
स्थानीय लोगों का कहना है कि रणजीतसिंह की यह पहल पूरे क्षेत्र के लिए प्रेरणादायी है। कई लोग अब उनके साथ जुड़कर इस मुहिम को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। वहीं, बच्चे भी खुद को भाग्यशाली मानते हैं कि उन्हें न केवल पढ़ाई का अवसर मिल रहा है, बल्कि एक सुरक्षित वातावरण भी मिला है।
सारण ने भविष्य की योजना बताते हुए कहा कि वे जल्द ही इस अभियान का विस्तार करना चाहते हैं ताकि और अधिक अनाथ एवं जरूरतमंद बच्चों को शिक्षा और आश्रय उपलब्ध कराया जा सके। उन्होंने अपील की कि समाज के सक्षम लोग भी आगे आएं और बच्चों की शिक्षा में सहयोग करें।
उनकी यह अनोखी यात्रा—सैनिक से शिक्षक और फिर समाजसेवी बनने तक—यह साबित करती है कि सच्ची देशभक्ति केवल सीमा पर ही नहीं, बल्कि समाज के कमजोर वर्गों की सेवा में भी निहित है। रणजीतसिंह सारण आज उन असंख्य बच्चों की उम्मीद बन चुके हैं, जिनके जीवन की रोशनी उनकी पहल से फिर जगमगाने लगी है।
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