वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर अजमेर दरगाह के भीतर तीखी वैचारिक दरार उभर आई है। सूफी परंपरा और गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक मानी जाने वाली ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह अब राजनीतिक और कानूनी बहस के केंद्र में है। दरगाह से जुड़े दो अहम संगठन खादिमों की प्रतिनिधि संस्था अंजुमन सैयद जादगान और दरगाह दीवान परिवार इस विधेयक को लेकर आमने-सामने खड़े हैं। अंजुमन जहां इसे मुस्लिम समुदाय के अधिकारों पर सीधा हमला मान रही है, वहीं दीवान परिवार इस संशोधन को सुधार की दिशा में जरूरी कदम बता रहा है। अंजुमन सैयद जादगान के सचिव सरवर चिश्ती ने विधेयक को सांप्रदायिक सोच की उपज करार दिया है। उनका कहना है कि 99.9 फीसदी मुसलमान इस कानून का विरोध कर रहे हैं सरवर चिश्ती ने किया विरोध
सरवर चिश्ती का आरोप है कि पिछले एक दशक में तीन तलाक, लव जिहाद और अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दों के जरिए मुसलमानों को लगातार निशाना बनाया गया है और अब उनकी धार्मिक संपत्तियों पर वक्फ कानून के बहाने से कब्जा किया जा रहा है। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि दरगाह परिसर में मंदिर मिलना जैसी बातें दरअसल एक बड़ी साजिश का हिस्सा हैं, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
दरगाह दीवान के बेटे का समर्थन
दूसरी ओर, दरगाह दीवान जैनुल आबेदीन के बेटे नसरुद्दीन चिश्ती का मानना है कि यह संशोधन वक्फ की जमीनों में पारदर्शिता लाने और भ्रष्टाचार रोकने की कोशिश है। उनका तर्क है कि अगर वक्फ संपत्तियों का सही और पारदर्शी तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो इससे मुसलमानों को ही फायदा होगा, नुकसान नहीं। उनका यह भी कहना है कि समुदाय को डर फैलाने की बजाय कानून की बारीकियों को समझना चाहिए। अजमेर में टकराव की यह स्थिति अब स्थानीय विवाद की बजाय राष्ट्रीय बहस का हिस्सा बन गई है और अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट और मुस्लिम संगठनों के रुख पर टिकी हैं।
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