राजस्थान के सीमावर्ती जिले जैसलमेर में सुरक्षा एजेंसियों ने जासूसी के संदेह में पूर्व कांग्रेस मंत्री सालेह मोहम्मद के पूर्व निजी सहायक (पीए) शकूर खान मांगलिया को गिरफ्तार किया है। सालेह मोहम्मद और उनके परिवार का पहले भी विवादों से नाता रहा है। 2013 में तत्कालीन विधायक सालेह मोहम्मद के पिता और मुस्लिम धर्मगुरु गाजी फकीर की हिस्ट्रीशीट खोली गई थी। एक के बाद एक मामले दर्ज हुए। उनके एक करीबी को भारतीय वायुसेना के सबसे बड़े युद्ध अभ्यास की जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया गया। हालांकि इन तमाम विवादों के बावजूद फकीर परिवार की मजबूत राजनीतिक पकड़ पर कोई असर नहीं पड़ा। उल्टा विवादों के बाद तत्कालीन एसपी पंकज चौधरी का वहां से तबादला कर दिया गया। अब एक बार फिर शकूर खान की गिरफ्तारी के बाद फकीर परिवार और तत्कालीन जैसलमेर एसपी की कार्रवाई चर्चा में है। साथ ही करीब 12 साल पहले की गई उस कार्रवाई के बारे में तत्कालीन आईपीएस पंकज चौधरी से बात की।
सालेह मोहम्मद के परिवार पर क्यों उठ रहे हैं सवाल?
28 मई को जैसलमेर में सुरक्षा एजेंसियों ने जिला रोजगार कार्यालय में क्लर्क (बाबू) शकूर खान मांगलिया को जासूसी के संदेह में गिरफ्तार किया था। आरोप है कि वह अपने विभाग को बताए बिना पाकिस्तान की यात्रा पर चला गया था। पूछताछ में उसने एजेंसियों के साथ सहयोग नहीं किया। इसके बाद शकूर को हिरासत में ले लिया गया। शकूर खान जैसलमेर के बड़ौदा गांव में मांगलियो की ढाणी का रहने वाला है। वह 2008 से 2013 तक पूर्व मंत्री और कांग्रेस नेता सालेह मोहम्मद के निजी सहायक (पीए) के तौर पर भी काम कर चुका है। उस समय सालेह मोहम्मद पोखरण से विधायक थे।
आईपीएस पंकज चौधरी ने कहा- पाकिस्तान से आते थे लोग
तत्कालीन जैसलमेर एसपी (आईपीएस) पंकज चौधरी कहते हैं- मैंने वर्ष 2013 में जैसलमेर एसपी के पद पर ज्वाइन किया था। मुझे एयरपोर्ट पर वीआईपी मूवमेंट की सूचना मिली थी। इसके बाद मैं एयरपोर्ट पहुंचा। ड्यूटी के दौरान मैंने एक फ्लाइट से आते हुए एक जैसे कपड़े पहने 10-12 सफेदपोश लोगों को देखा। मैंने पूछा कि ये कौन हैं और कहां से आ रहे हैं? तब मुझे बताया गया कि ये गाजी फकीर और उसके परिवार के सदस्य हैं, जो पाकिस्तान के रहीमयार इलाके से आ रहे हैं। ये लोग वहां आते-जाते रहते हैं। यह बात तब मुझे परेशान करने लगी। इसलिए मैंने इसकी उचित जांच शुरू की। जांच के दौरान मुझे पता चला कि गाजी फकीर की पहले भी हिस्ट्रीशीट थी। इसे एडिशनल एसपी स्तर के अधिकारी ने बंद किया था। शक होने पर गाजी फकीर का वर्ष 1965 से वर्ष 2013 तक का रिकॉर्ड चेक किया गया।
बंद हिस्ट्रीशीट खोली गई
पंकज चौधरी ने बताया- जांच में पता चला कि गाजी फकीर पर पूर्व में भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा पर तस्करी और असामाजिक गतिविधियों में कथित रूप से शामिल होने का आरोप था। वर्ष 1965 में पहली बार गाजी फकीर की हिस्ट्रीशीट खोली गई थी। वर्ष 1984 में हिस्ट्रीशीट की फाइल पुलिस रिकॉर्ड से गायब हो गई। इसके बाद वर्ष 1990 में फिर हिस्ट्रीशीट खोली गई, लेकिन मई 2011 में एएसपी रैंक के अधिकारी ने इसे बंद कर दिया। यह उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर का मामला था। इसके बाद मैंने फिर गाजी फकीर की हिस्ट्रीशीट खोली।
इसी दौरान हमें इनपुट मिला कि गाजी फकीर और उसके बेटे ने तत्कालीन पोकरण विधायक सालेह मोहम्मद के पेट्रोल पंप पर एके-47 और कई अन्य अवैध हथियार जमा कर रखे हैं। पुलिस टीम को वहां छापेमारी के लिए भेजा गया। तभी वहां एक कांस्टेबल को बंधक बनाकर जान से मारने की धमकियां दी गईं। इसके बाद सालेह मोहम्मद के खिलाफ मामला भी दर्ज किया गया। इसके अलावा इसी परिवार के एक व्यक्ति पर तिरंगे का अपमान करने का एक और मामला दर्ज हुआ था।
12 साल पहले भी रडार पर था शकूर खान
पंकज चौधरी कहते हैं- हाल ही में जासूसी के आरोप में पकड़ा गया शकूर खान विधायक सालेह मोहम्मद का पीए हुआ करता था। इसी दौरान विधायक सालेह मोहम्मद का एक और करीबी सुमेर खान भी पाकिस्तान के लिए जासूसी के आरोप में पकड़ा गया था। उस दौरान सुमेर खान से पूछताछ के बाद शकूर खान भी हमारे रडार पर आ गया। कोई कार्रवाई हो पाती, इससे पहले ही मेरा जैसलमेर से तबादला कर दिया गया। इसके बाद जो हुआ, वह सबके सामने है।
आईएसआई से ट्रेनिंग लेकर लौटा था सुमेर खान
जांच में पता चला है कि सुमेर खान फरवरी 2013 में जैसलमेर के पोखरण में वायुसेना के ऑपरेशन आयरन फीस्ट की जानकारी पाकिस्तान भेजने के आरोप में पकड़ा गया था। उसे विधायक गाजी फकीर के बेटे सालेह मोहम्मद का दाहिना हाथ माना जाता था। चांदन रेंज के कर्मा की ढाणी से सुमेर खान को गिरफ्तार किया गया था। उस पर आरोप था कि उसने 22 फरवरी 2013 को हुए भारतीय वायुसेना के सबसे बड़े युद्ध अभ्यास की तस्वीरें और सूचनाएं पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई को भेजी थीं।
7 बार पाकिस्तान जा चुका है शकूर खान
साल 2013 तक सालेह मोहम्मद का पीए रहने के बाद शकूर खान ने जिला रोजगार कार्यालय में क्लर्क के पद पर ज्वाइन किया था। खुफिया सूत्रों के मुताबिक, शकूर खान पिछले कुछ सालों में 7 बार पाकिस्तान जा चुका है। शकूर खान के पाकिस्तान के सिंध प्रांत के रहीमयार खान, सक्खर, घोटकी आदि इलाकों में करीबी रिश्ते हैं।पूछताछ के दौरान खुफिया एजेंसियों को उसके मोबाइल में पाकिस्तान के कई अज्ञात नंबर मिले हैं। इनके बारे में वह कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया। इसके अलावा दावा है कि शकूर ने अपने फोन से कई दस्तावेज भी डिलीट कर दिए हैं, जिन्हें रिकवर करने की भी कोशिश की जा रही है।अब एजेंसियां यह पता लगाने की कोशिश कर रही हैं कि उसके लगातार पाकिस्तान आने-जाने की वजह क्या थी। वह भारत में पाक दूतावास के किन अधिकारियों और कर्मचारियों के लगातार संपर्क में था? वह पाकिस्तान में किन लोगों के संपर्क में था और उसके कौन से रिश्तेदार पाकिस्तान में रहते हैं।
अब आपको बताते हैं कि गाजी फकीर कौन था? जिनके एक इशारे से राजनीतिक समीकरण बदल जाते थे। गाजी फकीर को भारत में सिंधी मुसलमानों का धार्मिक गुरु माना जाता था। उन्हें यह पद पाकिस्तान के पीर पगारों के प्रतिनिधि के तौर पर मिला था। वे यहां उनका प्रतिनिधित्व करते थे। 4 साल पहले गाजी फकीर की मौत के बाद उनका पद उनके बड़े बेटे सालेह मोहम्मद को दे दिया गया। तब मौलवियों ने सालेह मोहम्मद को पगड़ी पहनाई और खिलाफत-ए-पीर पगार की जिम्मेदारी सौंप दी। अपनी मौत से पहले गाजी फकीर 50 साल तक जैसलमेर की राजनीति में किंगमेकर की भूमिका निभाते रहे। उन्होंने साल 1995 में एक बार जिला परिषद सदस्य का चुनाव लड़ा। इसके अलावा उन्होंने कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा। साल 1970 के आसपास गाजी फकीर दलीय राजनीति में सक्रिय हो गए। 70 के दशक में गाजी फकीर ने बड़ौदा गांव (जैसलमेर) के भोपाल सिंह का समर्थन किया और उन्हें विधायक बनाने में अहम भूमिका निभाई। इसके बाद भोपाल सिंह की मदद से वे बड़ौदा गांव के निर्विरोध सरपंच बन गए। इस दौरान फकीर को धीरे-धीरे अपनी ताकत का अहसास हुआ। बाद में वे हर चुनाव में सक्रिय रहते और किसी एक उम्मीदवार का समर्थन करते और वह जीत जाता।
पार्टियों से दूरी बनाकर बनाया अपना राजनीतिक गठबंधन
वर्ष 1985 में गाजी फकीर ने सभी पार्टियों से दूरी बना ली। जैसलमेर में मुस्लिम और मेघवाल समुदाय का नया गठबंधन बना। इस दौरान मुल्तानाराम बारूपाल निर्दलीय खड़े हुए और इस गठबंधन के बल पर उन्होंने चुनाव जीत लिया। इससे फकीर का कद बढ़ गया। तब से लेकर 2020 तक यह गठबंधन चला और कांग्रेस के साथ ही रहा।चुनाव में फकीर का फरमान जारी हुआ। इसी तरह उनके भाई फतेह मोहम्मद भी राजनीति में ज्यादा सक्रिय रहे। गाजी फकीर ने फतेह मोहम्मद को 1993 में जैसलमेर विधानसभा से निर्दलीय चुनाव लड़वाया, लेकिन वे हार गए।
गाजी फकीर परिवार ने जैसलमेर जिला परिषद पर 15 साल तक राज किया। जिला प्रमुख का पद हमेशा उनके परिवार के पास ही रहा। वर्ष 2000 में भाई फतेह मोहम्मद को जिला प्रमुख तथा बेटे सालेह मोहम्मद को पंचायत समिति जैसलमेर का प्रधान बनाया गया। वर्ष 2005 में सालेह मोहम्मद जिला प्रमुख बने। इसके बाद वर्ष 2010 में दूसरे बेटे अब्दुल्ला फकीर जिला प्रमुख बने तथा वर्ष 2015 में तीसरे बेटे अमरदीन फकीर प्रधान बने। वर्ष 2008 में गाजी फकीर के बेटे सालेह मोहम्मद पोकरण विधायक बने। हालांकि 2013 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद वर्ष 2018 में सालेह मोहम्मद जीतकर एक बार फिर विधायक बने तथा कैबिनेट मंत्री बनाए गए। मानेसर प्रकरण के दौरान जब गहलोत सरकार पर संकट आया तो अस्वस्थ होने के बावजूद गाजी फकीर जयपुर आए। उन्होंने गहलोत समर्थक विधायकों से मुलाकात की। वर्तमान में भी गाजी फकीर के परिवार के कई सदस्य राजनीति में सक्रिय हैं तथा विभिन्न पदों पर कार्यरत हैं।
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