उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में एक स्वतंत्र पत्रकार राजीव प्रताप की मौत ने पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. 18 सितंबर की रात से लापता राजीव का शव दस दिन बाद 28 सितंबर को जोशियाडा बैराज से बरामद हुआ.
राजीव स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार और प्रशासनिक अव्यवस्थाओं पर रिपोर्टिंग करते थे और अपना यूट्यूब चैनल चलाते थे.
उनकी मौत के बाद उनके परिवार और पत्नी ने हत्या की आशंका जताई है. पत्नी मुस्कान का कहना है कि राजीव को कुछ दिनों से धमकी भरे फ़ोन कॉल आ रहे थे, जिनकी वजह से वह परेशान थे.
इस मामले की जांच के लिए एक विशेष टीम का गठन किया गया है जो मिले साक्ष्यों के आधार पर सभी पहलुओं की पड़ताल कर रही है.
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हालांकि पुलिस शुरुआती दौर से ही इस घटना को सड़क दुर्घटना मान रही है.
मामले के एसआईटी इंचार्ज जनक सिंह पंवार के मुताबिक़, अब तक की छानबीन और साक्ष्यों को देखते हुए यह एक सड़क दुर्घटना का मामला लगता है.
लेकिन अब यह मामला उत्तराखंड तक सीमित नहीं रहा, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर सुर्ख़ियों में आ गया है.
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इस मामले को लेकर राज्य की बीजेपी सरकार पर निशाना साधा. वहीं 'प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया' ने निष्पक्ष और पारदर्शी जांच की मांग की है.
पुलिस की जांच क्या कहती है?
18 सितंबर की शाम राजीव प्रताप उत्तरकाशी बाज़ार में अपने दो दोस्तों सोबन और मनवीर के साथ देखे गए थे.
उत्तरकाशी पुलिस के मुताबिक़, सीसीटीवी फ़ुटेज में रात क़रीब 11:38 बजे वह अपने दोस्त की गाड़ी चलाते हुए अकेले दिखाई देते हैं, और सिर्फ़ दो मिनट बाद उनका मोबाइल फ़ोन बंद हो जाता है.
अगली सुबह गंगोरी के पास एक गाड़ी नदी में गिरी हुई पाई गई. गाड़ी के भीतर चाबी लगी हुई थी और अंदर से राजीव की चप्पल भी मिली.
इसके बाद एसडीआरएफ़, एनडीआरएफ़ और पुलिस की टीमें तलाशी अभियान में जुट गईं.
लगातार खोजबीन के बाद 28 सितंबर को, यानी दस दिन बाद, राजीव का शव जोशियाडा बैराज से बरामद हुआ.
पुलिस ने शुरुआती तौर पर इसे दुर्घटना क़रार दिया और कहा कि घटनास्थल की भौगोलिक स्थिति ऐसी है जहां वाहन अनियंत्रित होकर सीधे नदी में गिर सकता है.
उत्तरकाशी की एसपी सरिता डोभाल ने बीबीसी हिन्दी से कहा, "पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण छाती और पेट की आंतरिक चोटें बताई गई हैं. परिवार वालों ने कुछ शंकाएँ ज़ाहिर की हैं, जिन्हें लेकर अभी विवेचना चल रही है. मामले की जांच के लिए विशेष टीम गठित की गई है."
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राजीव की पत्नी मुस्कान ने बताया कि 18 सितंबर को वह देहरादून में अपने ससुराल में थीं, जबकि राजीव उत्तरकाशी में उनके भाई के साथ रह रहे थे.
उसी रात क़रीब सवा 11 बजे उनकी आख़िरी बातचीत वीडियो कॉल पर हुई. बीस मिनट बाद जब उन्होंने दोबारा फ़ोन किया तो राजीव का मोबाइल बंद हो चुका था.
बीबीसी हिन्दी के साथ बातचीत में मुस्कान ने सवाल उठाया. उन्होंने कहा, "सोबन जानते थे कि राजीव गाड़ी चलाने में एक्सपर्ट नहीं थे, फिर भी उन्होंने गाड़ी दी."
सोबन पुलिस विभाग में हेड कांस्टेबल हैं. साथ ही राजीव के रिश्तेदार और क़रीबी दोस्त भी हैं.
मुस्कान का आरोप है कि राजीव को लगातार धमकी भरे फ़ोन आ रहे थे. उन्होंने मंदिर समिति, सड़क और अस्पताल में अव्यवस्था जैसे मुद्दों को उजागर किया था.
मुस्कान ने कहा, "अब उनकी आत्मा को तभी शांति मिलेगी जब उन्हें न्याय मिलेगा."
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बीबीसी हिन्दी के साथ बातचीत में सोबन का कहना है कि 18 सितंबर की शाम दोनों ने साथ में शराब पी और खाना खाया था. उस वक़्त राजीव के कैमरामैन मनवीर कलूड़ा भी मौजूद थे, लेकिन वो कुछ देर बाद चले गए.
सोबन ने कहा, "खाना खाने के बाद राजीव बाहर खड़ी गाड़ी में गए और पत्नी से वीडियो कॉल करने लगे. फिर ड्राइविंग सीट पर बैठकर बोले कि गाड़ी घुमाकर लाते हैं. कुछ देर बाद जब मैंने उन्हें कॉल किया तो राजीव ने बताया कि वह उजैली की तरफ़ से गाड़ी मोड़कर वापस आ रहे हैं."
सोबन कहते हैं कि उन्हें कोई अंदेशा नहीं था कि ऐसी दुर्घटना हो सकती है. उनके अनुसार राजीव परेशान ज़रूर रहते थे, लेकिन धमकियों को लेकर उन्होंने कभी खुलकर बात नहीं की.
सोबन कहते हैं, ''राजीव की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी और वह पैसों को लेकर चिंतित रहते थे. अगर सचमुच उन्हें धमकियां मिल रही होतीं तो वह सबसे पहले मुझे बताते.''
सोबन का कहना है कि वह ख़ुद भी इस घटना से सदमे में हैं. उन्होंने कहा, "राजीव जैसे दोस्त को खोना और उसके बाद ख़ुद पर शक उठना मेरे लिए मानसिक तनाव का कारण बन गया है."
साथी कैमरापर्सन ने क्या बताया?मनवीर कलूड़ा लगभग पिछले बीस दिनों से राजीव के साथ काम कर रहे थे.
उन्होंने बीबीसी हिन्दी को बताया कि शुरुआत ऐसे हुई थी कि एक दिन राजीव ने रात में अचानक फ़ोन कर उनसे कुछ रुपये उधार मांगे थे.
तभी से दोनों का मेलजोल बढ़ा और मनवीर कभी-कभी उनका कैमरा पकड़ने लगे.
18 सितंबर की रात मनवीर भी राजीव और सोबन के साथ थे. वह बताते हैं कि वह क़रीब दो घंटे उनके साथ रहे और फिर घर चले गए. अगली सुबह सोबन ने उन्हें राजीव के लापता होने की ख़बर दी.
मनवीर ने बताया, ''राजीव ने उन्हें कहा था कि किसी ने फ़ोन कर धमकी दी थी कि कोटियाल गांव के प्राथमिक विद्यालय से जुड़ी रिपोर्ट डिलीट कर दो. उस रिपोर्ट में स्कूल की टूटी छत और दान की गई ज़मीन का ज़िक्र था. फ़ोन करने वाला गांव का पूर्व प्रधान था. उसने कहा था कि वीडियो से उनकी बेइज़्ज़ती हो रही है."
उन्होंने कहा, "पत्रकारिता के काम के लिए उन्होंने पांच लाख रुपये उधार लिए थे, लेकिन लौटा नहीं पाए. चेक बाउंस होने पर सज़ा भी हो चुकी थी. उधार देने वाले शख़्स को वह डेढ़ लाख रुपये देने वाले थे ताकि अपील वापस ली जा सके. इसी वजह से उन्होंने अपनी बहन से भी पैसे मांगे थे."
मनवीर मानते हैं, "आर्थिक दबाव ने राजीव को बहुत परेशान कर रखा था."
उत्तरकाशी में लंबे समय से काम कर रहे वरिष्ठ पत्रकार पंकज कुशवाहा बताते हैं कि पत्नी के बयान और पुलिस की सुस्ती ने इस मामले को संदेहास्पद बना दिया है.
उनका कहना है, ''राजीव प्रताप ने अब तक की पत्रकारिता में भ्रष्टाचार के बहुत संगीन मामलों को उजागर नहीं किया था. हालांकि अस्पतालों की गंदगी या इलाके़ में कूड़े के निस्तारण जैसे मुद्दों पर उन्होंने रिपोर्टें ज़रूर की थीं.''
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राजीव प्रताप की मौत अब भी रहस्य बनी हुई है. पुलिस इसे सड़क दुर्घटना की दिशा में देख रही है.
मामले के एसआईटी इंचार्ज जनक सिंह पंवार ने बीबीसी को बताया, "अभी तक की गई जांच में यह निकलकर सामने आया है कि राजीव प्रताप की मौत एक सड़क दुर्घटना है. आगे छानबीन जारी है."
वहीं दूसरी ओर, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया ने पत्रकार की मौत पर दुख जताते हुए निष्पक्ष जांच की मांग की है.
राहुल गांधी ने एक्स पर पोस्टकिया, "बीजेपी राज में आज ईमानदार पत्रकारिता भय और असुरक्षा के साये में जी रही है. जो सच लिखते हैं, जनता के लिए आवाज़ उठाते हैं, सत्ता से सवाल पूछते हैं- उन्हें धमकियों और हिंसा से चुप कराने की कोशिश की जा रही है. राजीव जी के साथ हुआ पूरा घटनाक्रम ऐसे ही षड्यंत्र की ओर इशारा करता है."
"राजीव जी की मृत्यु की अविलंब निष्पक्ष और पारदर्शी जांच होनी चाहिए और पीड़ित परिवार को बिना देरी न्याय मिलना चाहिए."
अपने बयान में प्रेस क्लब ने कहा था, "राजीव प्रताप के परिवार ने आरोप लगाया है कि उनकी मौत उनके पेशेवर काम से जुड़ी हो सकती है. उन्हें संवेदनशील ख़बरें लिखने के लिए निशाना बनाया गया है."
प्रेस क्लब ने यह भी चेतावनी दी कि अगर "पत्रकारों की हत्या अपने कर्तव्य को निभाने के लिए की जा रही है तो लोकतंत्र गंभीर रूप से ख़तरे में है."
प्रेस क्लब ने ज़ोर देकर कहा कि इस मामले की जांच पत्रकारिता निकायों और फ़ोरेंसिक विशेषज्ञों की भागीदारी के साथ एक विश्वसनीय, निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके़ से होनी चाहिए.
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