पश्चिमी देशों को जीवाश्म ईंधन बेचकर रूस अरबों डॉलर कमा रहा है. इससे रूस को यूक्रेन के ख़िलाफ़ जंग में मदद में मिल रही है. इस जंग को शुरू हुए तीन साल से ज़्यादा समय हो चुका है.
फ़रवरी, 2022 में यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद, रूस ने हाइड्रोकार्बन का निर्यात करके बहुत कमाई की है. ये रकम, यूक्रेन को अपने सहयोगियों से मिलने वाली मदद की तुलना में तीन गुना से भी ज़्यादा है.
बीबीसी ने इससे संबंधित आंकड़ों का विश्लेषण किया है.
कार्यकर्ताओं का कहना है कि यूरोप और उत्तरी अमेरिका की सरकारों को रूसी तेल और गैस की ख़रीद पर रोक लगाने के लिए और अधिक कोशिश करनी चाहिए.

तेल और गैस की बिक्री से होने वाली कमाई रूस के लिए अहम है और यही युद्ध को जारी रखने में उसे मदद कर रही है.
तेल और गैस रूस के राजस्व का लगभग एक तिहाई और इसके निर्यात का 60 फ़ीसद से अधिक हिस्सा है.
फरवरी 2022 के आक्रमण के बाद, यूक्रेन के सहयोगियों ने रूसी हाइड्रोकार्बन पर प्रतिबंध लगा दिए. अमेरिका और ब्रिटेन ने रूसी तेल और गैस पर प्रतिबंध लगा दिया, जबकि यूरोपीय संघ ने रूसी समुद्री कच्चे तेल के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन गैस पर नहीं.
फ़िनलैंड के थिंक टैंक के अनुसार , 29 मई तक रूस ने पूरी तरह से आक्रमण की शुरुआत के बाद से जीवाश्म ईंधन के निर्यात से 883 बिलियन यूरो से अधिक का राजस्व हासिल किया था, जिसमें प्रतिबंध लगाने वाले देशों से प्राप्त 228 बिलियन यूरो भी शामिल थे.
इस धनराशि का बहुत बड़ा हिस्सा यानी लगभग 209 बिलियन यूरो यूरोपीय संघ के सदस्य देशों से आया.
यूरोपीय संघ के देश रूस से सीधे पाइपलाइन गैस का आयात तब तक करते रहे, जब तक कि यूक्रेन ने जनवरी 2025 में इस रास्ते को बंद नहीं कर दिया. रूसी कच्चा तेल अभी भी पाइपलाइन के ज़रिए हंगरी और स्लोवाकिया को भेजा जाता है.
रूसी गैस भी तुर्की के ज़रिए पहले की तुलना में बड़ी मात्रा में यूरोप तक पहुंचाई जा रही है.
सीआरईए के आंकड़ों से पता चलता है कि जनवरी और फरवरी 2025 में इसकी मात्रा 2024 की समान अवधि की तुलना में 26.77 फ़ीसद बढ़ गई.
हंगरी और स्लोवाकिया को अभी भी तुर्की के ज़रिए रूसी पाइपलाइन से गैस मिल रही है.
, पश्चिम की लगातार कोशिशों के बावजूद, 2024 में रूस को जीवाश्म ईंधन से मिलने वाला राजस्व 2023 की तुलना में मुश्किल से पांच फ़ीसद गिरा है. साथ ही निर्यात में भी छह फ़ीसद की गिरावट देखी गई है.
पिछले साल भी कच्चे तेल के निर्यात से रूसी राजस्व में छह प्रतिशत की वृद्धि हुई थी और पाइपलाइन गैस से राजस्व में साल-दर-साल नौ प्रतिशत की वृद्धि देखी गई.
रूस के अनुमानों के अनुसार, 2024 में यूरोप को गैस निर्यात में 20 फ़ीसद तक की वृद्धि हुई. लिक्विफ़ाइड पेट्रोलियम गैस (एलएनजी) निर्यात रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा है.
सीआरईए का कहना है कि वर्तमान में रूस के एलएनजी निर्यात का आधा हिस्सा यूरोपीय संघ को जाता है.
यूरोपीय संघ की विदेश नीति प्रमुख काया कल्लास का कहना है कि गठबंधन ने रूसी तेल और गैस पर "सबसे कड़े प्रतिबंध" नहीं लगाए हैं, क्योंकि कुछ सदस्य देशों को संघर्ष बढ़ने का डर है और उनके लिए रूसी गैस और तेल ख़रीदना अभी सस्ता है.
यूरोपीय संघ की ओर से रूस पर लगाए गए ताज़ा, 17वें प्रतिबंध पैकेज में एलएनजी आयात को शामिल नहीं किया गया है, लेकिन इसने के रूसी गैस आयात को ख़त्म करने की दिशा में एक रोडमैप अपनाया है.
आंकड़े दिखाते हैं कि जीवाश्म ईंधन बेचकर रूस की कमाई, यूक्रेन को उसके सहयोगियों से मिलने वाली सहायता राशि से लगातार अधिक रही है.
पश्चिमी देश चाहते हैं कि रूस पर प्रतिबंध लगाए जाएं ताकि युद्ध के लिए वो पर्याप्त धन ही ना जुटा सके. लेकिन साथ ही वो सस्ता ईंधन भी चाहते हैं और इसी वजह से रूस के ख़िलाफ़ उन्हें अपने अभियान में कामयाबी नहीं मिल पा रही है.
ग्लोबल विटनेस की एक्टिविस्ट माई रोस्नर का कहना है कि कई पश्चिमी नीति निर्माताओं को डर है कि रूसी ईंधन के आयात में कटौती से ऊर्जा की कीमतें बढ़ जाएंगी. ग्लोबल विटनेस एक स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो मानवाधिकारों और पर्यावरण की रक्षा के लिए काम करता है.
उन्होंने बीबीसी से कहा, "कई सरकारों में रूस की तेल उत्पादन और बिक्री की क्षमता को सीमित करने की कोई वास्तविक इच्छा नहीं है. वैश्विक ऊर्जा बाज़ारों के लिए इसका क्या मतलब होगा, इसे लेकर बहुत अधिक डर है. एक सीमा खींची गई है, जिसके बाद ऊर्जा बाजारों को बहुत कमज़ोर किया जाएगा या उन्हें बहुत ज़्यादा नुक़सान पहुंचाया जाएगा."

सीधी बिक्री के अलावा, रूस से निर्यात किया जाने वाला कुछ तेल तीसरे देशों में प्रोसेस होने के बाद पश्चिम में चला जाता है, जिसे "रिफ़ाइनिंग लूपहोल" के नाम से जाना जाता है. कभी-कभी इसे दूसरे देशों के कच्चे तेल के साथ मिलाकर भी तैयार किया जाता है.
सीआरईए का कहना है कि उसने तुर्की में तीन और भारत में तीन "लॉन्ड्रोमैट रिफ़ाइनरियों" की पहचान की है, जो रूसी कच्चे तेल को प्रोसेस कर रही हैं और फिर ईंधन को उन देशों को बेच रही हैं जिन्होंने रूस पर प्रतिबंध लगाए हैं.
सीआरईए ने कहा कि उन्होंने प्रतिबंध लगाने वाले देशों के लिए उत्पाद बनाने के लिए 6.1 बिलियन यूरो क़ीमत के रूसी कच्चे तेल का इस्तेमाल किया है.
भारत के पेट्रोलियम मंत्रालय ने सीआरईए की रिपोर्ट की आलोचना करते हुए इसे "" बताया है.
सीआरईए के विश्लेषक वैभव रघुनंदन कहते हैं, "ये देश जानते हैं कि प्रतिबंध लगाने वाले देश इसे स्वीकार करने के लिए तैयार हैं. यह एक कमी है. यह पूरी तरह से क़ानूनी है. हर कोई इसके बारे में जानता है, लेकिन कोई भी इसे बड़े पैमाने पर रोकने के लिए कुछ नहीं कर रहा है."
कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों का तर्क है कि पश्चिमी सरकारों के पास रूस के ख़ज़ाने में तेल और गैस राजस्व के प्रवाह को रोकने के लिए उपकरण और साधन उपलब्ध हैं.
रूस के पूर्व ऊर्जा उपमंत्री व्लादिमीर मिलव अब व्लादिमीर पुतिन के कट्टर विरोधी हैं. उनके अनुसार रूसी हाइड्रोकार्बन के व्यापार पर लगाए गए प्रतिबंधों को बेहतर ढंग से लागू किया जाना चाहिए.
मिलव का कहना है कि जी-7 देशों ने तेल क़ीमतों की जो सीमा तय है, "वह काम नहीं कर रही है."
हालांकि, उन्हें डर है कि अमेरिकी प्रशासन में फेरबदल से अमेरिकी ट्रेजरी या विदेशी संपत्ति नियंत्रण कार्यालय (ओएफ़एसी) जैसी एजेंसियों पर असर पड़ेगा, जो प्रतिबंधों को लागू करने के लिए महत्वपूर्ण हैं.
मिलव के मुताबिक़ एक और रास्ता ये है कि वो रूस के टैंकरों के "शैडो फ़्लीट" पर लगातार दबाव बनाए. सुरक्षाबलों से बचने के लिए रूसी जहाज़ों के बेड़ों को शैडो फ़्लीट कहते हैं.
उनके अनुसार, यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां पश्चिमी सरकारें बहुत अधिक प्रभावी रही हैं, विशेष रूप से जनवरी 2025 में जो बाइडन प्रशासन के नए प्रतिबंधों की शुरूआत के साथ.
ग्लोबल विटनेस की एक्टिविस्ट माई रोस्नर का कहना है कि, "रूसी हाइड्रोकार्बन से पश्चिम को अलग करने की प्रक्रिया के लिए ज़रूरी है कि यूरोप रूसी एलएनजी निर्यात पर प्रतिबंध लगाए और पश्चिमी क्षेत्रों में रिफ़ाइनिंग की ख़ामियों को दूर करे."
सीआरईए के रघुनंदन के अनुसार, यूरोपीय संघ के लिए रूसी एलएनजी आयात को छोड़ना आसान होगा.
उन्होंने बीबीसी से कहा, "रूस के एलएनजी निर्यात का 50 प्रतिशत हिस्सा यूरोपीय संघ को जाता है जबकि 2024 में यूरोपीय संघ की कुल (एलएनजी) गैस खपत का केवल 5 फ़ीसद रूस से आया. इसलिए अगर यूरोपीय संघ रूसी गैस को पूरी तरह से बंद करने का फ़ैसला करता है, तो इससे यूरोपीय संघ के उपभोक्ताओं की तुलना में रूस को कहीं अधिक नुक़सान होगा."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
You may also like
गाजा में 13 मई को सिलसिलेवार एयरस्ट्राइक में मारा गया हमास नेता मुहम्मद सिनवार: आईडीएफ
आमिर खान ने गर्लफ्रेंड गौरी स्प्रैट से की पहचान, क्या तीसरी शादी की तैयारी?
चीन में ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस का बढ़ता खतरा: भारत में अलर्ट
IPL 2025 के बाद अब साई सुदर्शन लाल गेंद से खेलने के लिए तैयार, कहा- काउंटी क्रिकेट का होगा फायदा...
Rajasthan : जोधपुर में हवाई अड्डे का होने जा रहा है विस्तार, श्री करणी इंटरनेशनल एयरपोर्ट ...