वक़्फ़ संशोधन विधेयक राष्ट्रपति से मंज़ूरी के बाद अब क़ानून की शक्ल ले चुका है. सरकार का दावा है कि इस के ज़रिए वो पारदर्शिता सुनिश्चित करेगी, वक़्फ़ संपत्तियों की कथित लूट रोकी जाएगी और प्रशासनिक जवाबदेही भी तय होगी.
हालांकि, विरोधी दलों और कई मुस्लिम संगठनों का आरोप है कि सरकार आख़िर एक ही धर्म में सारे सुधार लाने पर क्यों आमादा है. यह बिल उनकी नज़र में अल्पसंख्यक अधिकारों में दख़ल का मामला है.
क्या ये संशोधन वास्तव में एक सुधार का क़दम है या मुसलमानों को निशाने में रखकर उठाया गया क़दम है? क्या ये बिल भ्रष्टाचार ख़त्म करेगा और क्या वक़्फ़ बाय यूज़र को हटाने से एक धार्मिक बहस तेज़ होगी?
2013 में जिन 123 वीआईपी संपत्तियों को वक़्फ़ को दिए जाने का आरोप है, उसका मामला आख़िर क्या है और इस क़दम का बिहार की राजनीति पर कैसा असर पड़ सकता है? क्या है इस क़दम का राजनीतिक एजेंडा?

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बीबीसी हिन्दी के साप्ताहिक कार्यक्रम, 'द लेंस' में कलेक्टिव न्यूज़रूम के डायरेक्टर ऑफ़ जर्नलिज़म मुकेश शर्मा ने इन्हीं सवालों पर चर्चा की.
इन पहलुओं पर चर्चा के लिए जनता दल यूनाइटेड के नेता राजीव रंजन, संविधान विशेषज्ञ संजय हेगड़े और वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी के साथ ही यूपीए सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के अलावा क़ानून और न्याय मामलों के मंत्री रहे सलमान ख़ुर्शीद शामिल हुए.
बिहार की राजनीति पर क्या होगा असर?बिहार में इसी साल के अंत में चुनाव होने जा रहा है. इससे ठीक पहले यह बिल बिहार की राजनीति में एक नई लकीर खींच सकता है. बिहार में मुस्लिमों का कई सीटों पर दबदबा है. यही वजह है कि पार्टी कोई भी हो, इफ़्तार पार्टी सब करते हैं.
नीरजा चौधरी कहती हैं, "मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि भाजपा ने बिहार चुनाव बीतने का इंतजार क्यों नहीं किया? टीडीपी के साथ जेडीयू को भी इस मसले पर साथ ले आई और बिहार के पसमांदा मुस्लिम जेडीयू को वोट देते आ रहे हैं."
वो कहती हैं कि इसके मायनें ये हैं कि जेडीयू ये मान चुकी है कि मुस्लिम तबके का वोट उन्हें आने वाला नहीं है. राजद के साथ जाएगा ही जाएगा लेकिन पहले ऐसा नहीं होता था.
उन्होंने कहा, "नीतीश कुमार की प्रासंगिकता अब भी बनी हुई है क्योंकि कुछ समुदायों जैसे कुर्मी, कोइरी, महादलित और पसमांदा मुस्लिम में उनकी पकड़ बनी हुई है."
जेडीयू ने क्यों दिया वक़्फ़ पर भाजपा का साथ?जनता दल यूनाइटेड के नेता राजीव रंजन ने कहा, "इस बिल को लेकर कई भ्रांतियां हैं. इसे लेकर विपक्षी दलों ने दुष्प्रचार किया है. यह विधेयक जब की शक्ल लेकर धरातल पर आएगा तो कई तरह के भ्रम का निवारण स्वत: हो जाएगा."
उन्होंने कहा कि अगर जनता दल यूनाइटेड इस बिल पर साथ है तो मुस्लिमों को कतई भी घबराने की ज़रूरत नहीं है.
उन्होंने कहा, " इस विधेयक को नीतीश कुमार ने अगर समर्थन दिया है तो मुस्लिमों को यह यकीन रखना होगा कि यह उनके ख़िलाफ़ नहीं होगा."
वो कहते हैं कि सवाल तो हर परिवर्तन पर ही खड़े होते हैं लेकिन संशोधनों में यह कोशिश होती है कि जहां गलतियां हुई हों उनका समाधान किया जा सके.

इस पर जेडीयू नेता राजीव रंजन कहते हैं, "इसे धर्म से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए. बिहार में हिंदुओं के लिए भी बिहार धार्मिक बोर्ड बना हुआ है. वह मंदिरों की ऑडिट से लेकर व्यवस्थाएं देखता है. बोधगया में बौद्ध मंदिर के लिए एक कमेटी है. उसमें अधिकारी भी होते हैं और गैर बौद्ध भी होते हैं. बिहार धार्मिक बोर्ड के अध्यक्ष पिछले छह सालों से जैन थे. इसे लोग बदलाव और सुधार के नज़रिए से देखें तो बेहतर हेागा."
उन्होंने कहा कि इस विधेयक को मस्जिदों, इमामबाड़ों और ईदगाहों के प्रबंधन को लेकर नहीं देखना चाहिए.
उन्होंने कहा, " बिहार के ग़रीब और पसमांदा मुसलमानों में लंबे समय से कसमसाहट है कि उनके कंधों पर सवार होकर उनके अधिकारों को छीना गया है."
वो कहते हैं कि नीतीश कुमार ने कई फ़ैसले वोट के लिए नहीं किए. अगर ये विधेयक मुसलमानों के ख़िलाफ़ होता तो हमारी पार्टी कतई भी इसका समर्थन नहीं करती.
वक़्फ़ पर सहयोगियों को कैसे साथ ले आई बीजेपी?वक़्फ़ पर भाजपा सरकार के सहयोगी दल उनके साथ रहे. इसके विरोध में कहीं से कोई आवाज़ नहीं उठी.
इसे लेकर नीरजा चौधरी कहती हैं, "भाजपा ने जिस तरह से सभी सहयोगियों का इस विधेयक पर साथ लिया यह निश्चित रूप से भाजपा की राजनीतिक कुशलता को दिखाता है."
उन्होंने बताया कि अगर सभी का साथ नहीं मिलता तो इसे पास कराना मुश्किल हो जाता. जेपीसी में सहयोगियों ने कुछ बदलाव सुझाए, जिसे स्वीकार कर लिया गया. इसके बाद छोटी पार्टियों ने भी देखा, इससे उतना नुकसान नहीं होगा जितना बताया जा रहा है.
वो कहती हैं कि टीडीपी को देखें तो आंध्र प्रदेश में अगर मुस्लिम चंद्रबाबू नायडू के खिलाफ़ हो जाते हैं, तो उनके लिए चुनाव में मुश्किल हो जाएगा. उनके विपक्षी जगन रेड्डी इस स्थिति में ही नहीं हैं कि वो उनके खिलाफ़ आवाज़ उठाएं. उनके खिलाफ़ कई केस हैं और इससे उनकी स्थिति कमजोर है.
क्या संदेश देना चाहती है बीजेपी?नीरजा चौधरी ने कहा, "बीजेपी ने जब अनुच्छेद 370 को हटाया था तो प्रधानमंत्री नहीं गृहमंत्री बोले थे और कई शानदार तर्क दिए थे. उसी तरह से वक़्फ़ को लेकर भी गृहमंत्री ने पूरी तैयारी के साथ तर्क दिए हैं."
वो कहती हैं कि प्रधानमंत्री इस तरह की चीजें जानबूझकर गृहमंत्री पर छोड़ रहे हैं. ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री वैश्विक चीजों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं. अर्थव्यवस्था, विदेश नीति जो बड़ी-बड़ी चुनौंतियां आ रही हैं. बांग्लादेश में क्या हो रहा है? ट्रंप के टैरिफ़ का क्या असर होने वाला है?
संदेश क्या जा रहा है? उन्होंने कहा कि भाजपा अपनी पुरानी नीति पर ही चल रही है लेकिन सहयोगी इतनी जल्दी तैयार हो गए यह चकित करने वाली है.
चौधरी कहती हैं कि सहयोगियों ने कई चीज़ों पर ज्यादा जोर नहीं दिया जो कि वो कर सकते थे. वह थोड़े दिन रुकने के लिए कह सकते थे जिससे वह बातचीत शुरू करें, एक डायलॉग शुरू करें क्योंकि उनका ये वोट बेस है. ऐसे में सहयोगियों की हां ही इस बिल को वैधता देती है.
संपत्तियों से बेदखल नहीं किए जाएंगे वक़्फ़ बाय यूज़रवक़्फ़ (संशोधन) बिल , 2024 को केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने अगस्त में लोकसभा में पेश करते हुए इसकी ख़ूबियां गिनाई थीं.
किरेन रिजिजू ने तब संसद में कहा था, "इसके आने से किसी की भी धार्मिक आज़ादी में हस्तक्षेप नहीं होगा. यह बिल किसी का अधिकार लेने की नहीं बल्कि उन लोगों को अधिकार देने के लिए लाया जा रहा है, जिन्हें वक़्फ़ संबंधी अपने मामलों में अधिकार नहीं मिल पाता."
दरअसल, वक़्फ़ संशोधन पर नया बिल, 1995 के वक़्फ़ एक्ट को संशोधित करने के लिए लाया गया है. इस बिल का नाम है यूनाइटेड वक़्फ़ मैनेजमेंट एम्पॉवरमेंट, एफ़िशिएंसी एंड डेवलपमेंट एक्ट-1995 यानी 'उम्मीद'.
अब जबकि इस विधेयक को संसद ने पारित कर दिया है फिर भी इसे लेकर आपत्तियां आ रही हैं.
यूपीए सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के अलावा क़ानून और न्याय मामलों के मंत्री रहे सलमान ख़ुर्शीद इस विधेयक की तीन प्रमुख आपत्तियों का जिक्र करते हैं.
पूर्व कानून मंत्री सलमान ख़ुर्शीद ने कहा, " किस तरह से इसे लागू किया जाता है. इस बात पर बहुत कुछ निर्भर है. यह संशोधन कितना स्पष्ट है मैं नहीं बता पाऊंगा. एक बड़ा प्रश्न वक़्फ़ बाय यूज़र को लेकर था. इसे पहले समाप्त किया जा रहा था लेकिन अब यह बताया गया है कि इसे आगे के लिए समाप्त किया गया. पहले की संपत्तियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. यह बहुत बड़ी राहत है."

उन्होंने कहा," जितनी पुरानी संपत्तियां हैं, वह वक़्फ़ बाय यूज़र हैं लेकिन उनकी डीड नहीं हैं. उनके पूरे रिकॉर्ड नहीं हैं और इसके कारण वक़्फ़ बाय यूज़र नहीं माना जाएगा तो फिर समस्या हो सकती है. ये समस्या नहीं होती है तो बहुत बड़ी राहत यकीनन मिल जाएगी."
उन्होंने बताया, "दूसरी समस्या लिमिटेशन एक्ट है. इसे बहुत सुझबूझ के साथ पहले हटाया गया था लेकिन अब इसे फिर से लागू कर दिया गया है. यह 30 साल का है या फिर 12 साल का है. यह बात सामने आकर ही स्पष्ट हो पाएगी."
ये दो बड़ी समस्याएं हैं लेकिन इसके साथ-साथ अगर ये कहा जा रहा है कि वक़्फ़ में जो अनियमितताएं हैं, उसे दूर करना है तो इसके लिए क्या प्रावधान किया गया है? पारदर्शिता के लिए क्या प्रावधान है. इसका कहीं कोई जवाब नहीं है.
सलमान ख़ुर्शीद ने कहा कि वक़्फ़ प्रबंधन को लेकर जो बात है कि इसकी देखरेख कौन करेगा? कैसे करेगा? उसका एक बड़ा प्रश्न उठा है कि सरकारी तंत्र को एक बड़ा रोल दे दिया गया है. यह मामला कोर्ट में तो जाएगा ही लेकिन इसका प्रभाव क्या पड़ेगा यह तभी देखने को मिलेगा जब इसे लागू किया जाएगा.

संसद में चल रही बहस में अमित शाह ने कहा था कि धार्मिक मामलों में बोर्ड का दखल नहीं होगा. बल्कि प्रशासनिक कार्यों में गैर-मुसलमानों को शामिल किया जाएगा.
इस बात पर सलमान ख़ुर्शीद कहते हैं, "सभी धर्मों के लोग एक दूसरे की सहायता और सहयोग करें तो अच्छी बात होती लेकिन ऐसा और कहीं तो नहीं है."
वो कहते हैं कि किसी भी बड़े मंदिर की समिति में दूसरे धर्म के लोग नहीं होते हैं. ये सिर्फ़ कहने की बात है कि वह प्रशासनिक कार्य में दखल करेंगे, आखिर उन्हें दखल ही क्यों दिला रहे हैं?"
वक़्फ़ संपत्तियों से होने वाली आय की पारदर्शिता को लेकर सलमान ख़ुर्शीद कहते हैं कि इसका स्वागत किया जा सकता है लेकिन एक प्रश्न उठता है कि हर धार्मिक स्थान पर ऑडिट होगा और फिर यह हर जगह होना चाहिए.
बिल पास होने पर धार्मिक नारेबाजी क्यों?
वक़्फ़ (संशोधन) बिल को धर्म से हटाकर केवल प्रशासनिक सुधार के स्तर पर देखें तो विधेयक में क्या दिखाई देता है?
इस पर सलमान ख़ुर्शीद ने कहा, "इसे देखकर लगता है कि सुधार में दिलचस्पी नहीं है. ये धर्म पर अंकुश लगाने की दिलचस्पी है."
वो कहते हैं कि, " ये लोग समझ रहे हैं. जब लोग ऐसा समझते हैं तो संवेदनशीलता के साथ उन्हें समझाना चाहिए कि ऐसा नहीं है. इसका एक तरीका होता है. "
उन्होंने कहा कि जब ये बिल पास हो गया तो धार्मिक नारे लगे क्या वो सही था? अगर ये बिल धर्म के संदर्भ में पास नहीं हुआ है. ये अच्छा काम करने के संदर्भ में हुआ है तो क्या धार्मिक नारे लगने चाहिए थे?
2013 में वक़्फ़ को क्यों दी गई 123 संपत्तियां?
सलमान ख़ुर्शीद ने इस सवाल पर कहा, "वक़्फ़ संशोधन से इसका कुछ लेना-देना नहीं है. इसे बहुत विस्तार से समझाया गया था. कोई इसे नहीं समझाना चाहता है तो और बात है."
वो कहते हैं कि जब दिल्ली में राजधानी बनाई जा रही थी तो उसके लिए ज़रूरी ज़मीन के लिए किए गए अधिग्रहण में कई ऐसी जगहों का भी अधिग्रहण हो गया जो धार्मिक थी. बर्नी कमेटी ने कहा कि गलती से इनका अधिग्रहण हो गया.
उन्होंने कहा, "आज भी लुटियंस ज़ोन में इमारतों के बीच कई कब्रें और दरगाहें देखने को मिल जाएंगी. इन्हें अलग से घेर दिया गया और कहा गया कि इन पर कोई विवाद न हो."
ख़ुर्शीद ने कहा, "इसके अलावा बर्नी कमेटी ने ही ऐसी जो उपयोग में थीं, जैसे-मस्जिद. वली तो बचे नहीं थे तो वापस किसको करें, तो वो वक़्फ़ बोर्ड को दे दी गईं. इसका संशोधन से न तब लेना देना था और न ही अब लेना देना है."
संविधान विशेषज्ञ संजय हेगड़े इस सवाल पर कहते हैं, "नियंत्रण ज्यादातर कलेक्टर के हाथ में है. कलेक्टर यह निर्धारित कर सकता है कि क्या ज़मीन वक़्फ़ की है और सरकार की. मुंसिफ़ भी वही होगा और मुद्दई भी वही होगा तो इंसाफ़ कहां से होगा?"
उन्होंने कहा, "वक़्फ़ प्रबंधन को बेहतर करने की ज़रूरत है लेकिन सवाल यह है कि बोर्ड में कौन बैठता है? पहले भी सरकार के मनोनीत व्यक्ति ही बैठते थे. हां पहले ये मुस्लिम ही होते थे लेकिन अब ये ज़रूरी नहीं है."
वो कहते हैं, अब रही बात भ्रष्टाचार की तो इस विधेयक से कोई खास सुधार नहीं होने जा रहा है.
संजय हेगड़े कहते हैं कि कोई वक़्फ़ संपत्ति है और उस पर सवाल आता है कि वो वक़्फ़ की है या सरकारी है तो यह मुद्दा धार्मिक भी है और प्रशासनिक भी है. इसे कैसे अलग किया जा सकता है?

इस पर वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी ने कहा," गृहमंत्री ने संसद में वक़्फ़ का पूरा इतिहास दिया."
वह कहती हैं कि सवाल सुधार का नहीं है. मुस्लिम समाज की तरफ से सवाल उठा है कि सरकार की नीयत क्या है? इसे लेकर मुस्लिम समाज में क्या धारणा बन रही है?"
उन्होंने कहा, "मुझे याद है कि जब शाह बानो केस का फ़ैसला आया था तो मुस्लिमों ने बहुत बड़ा विरोध प्रदर्शन किया था.आज़ादी के बाद ऐसा प्रदर्शन कभी नहीं देखा गया था. मंदिर मामले में भी मुसलमानों का इतना विरोध नहीं था जितना शाह बानो के मामले में था. इसका कारण था कि उन्हें लगा कि यह उनकी धर्म में हस्तक्षेप है."
नीरजा चौधरी कहती हैं कि वक़्फ़ को लेकर मुस्लिमों में यही धारणा दिखाई देती है.
संजय हेगड़े ने कहा, " बहुत सारे केस मैंने देखे हैं. गुजरात में सोमनाथ मंदिर के नजदीक काफी तोड़फोड़ की गई थी. वहां 1200 ईसवी की दरगाह थी. आज सरकार वहां कह रही है कि वो सरकारी ज़मीन है जब कि सरकार बनने से पहले भी वहां ये मज़ार थी. अब ये एक मुद्दा है. "
वो कहते हैं कि अब ऐसी स्थिति में कलेक्टर किसका पक्ष लेगा? कलेक्टर वक़्फ़ चला रहा है तो क्या वह वक़्फ़ के पक्ष में फैसला लेगा या फिर सरकार के पक्ष में. ये सरासर हितों का टकराव है.
उन्होंने कहा, " उत्तर प्रदेश है. उसमें साफ है कि कोई भी गैर हिंदू इस समिति में किसी भी स्तर पर भाग नहीं ले सकता है. चाहे प्रबंधन जिला जज के साथ ही क्यों न हो. जिला जज अगर मुसलमान है तो वह हट जाता है और किसी और को भेज देता है."
उन्होंने कहा कि कलेक्टर को मुंसिफ़ और मुद्दई बनाएंगे तो फिर इंसाफ़ कहां से आएगा? इन प्रावधानों के खिलाफ़ जब कोर्ट में मामला आएगा तो ये सवाल कोर्ट भी पूछेगा.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित
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