चीन के सरकारी मीडिया में विदेश मंत्री वांग यी की भारत यात्रा को प्रमुखता से कवर किया गया है.
मीडियाके मुताबिक़ अपनी दो दिनों की भारत यात्रा में वांग यी ने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ दोनों देशों के बीच 'सीमा विवाद' पर अहम चर्चा की. साथ ही विदेश मंत्री एस. जयशंकर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाक़ात की.
चीन के सरकारी मीडिया के मुताबिक़ भारत, अमेरिकी टैरिफ़ के मद्देनज़र अब अपनी रणनीति में बदलाव करना चाहता है और वांग यी की भारत यात्रा इसी का हिस्सा थी.
चीन के मीडिया के मुताबिक़ भारत और चीन के 'मज़बूत संबंध' ग्लोबल साउथ के लिए फ़ायदेमंद साबित होंगे.
ग्लोबल साउथ टर्म एशिया, अफ़्रीका और दक्षिण अमेरिका के विकासशील देशों के समूह के लिए इस्तेमाल की जाती है.
हालांकि वांग यी की यात्रा को लेकर भारत और चीन के बयानों में अंतर भी देखा गया. ख़ास तौर से ताइवान के मुद्दे पर और तिब्बत की सांगपो नदी पर चीन के प्रस्तावित बांध के मुद्दे पर.
चीन के इस महत्वाकांक्षी बांध पर भारत ने चिंता जताई थी और विशेषज्ञों ने इसे पर्यावरण के लिए ख़तरा बताया था.
वांग यी की भारत यात्रा से क्या हासिल हुआ? ये पूछने पर चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंगने 20 अगस्त को कहा था कि दोनों पक्ष कई अहम मुद्दों को लेकर सहमति पर पहुंचे हैं.
इनमें अलग-अलग मुद्दों को लेकर आपसी बातचीत (डायलॉग) फिर शुरू करना, परस्पर लाभकारी सहयोग को और गहरा करना और वैश्विक चुनौतियों का मिलकर सामना करने के साथ ही किसी भी देश के एकतरफ़ा दबाव बनाने की नीति का विरोध करना शामिल है. चीन के सरकारी अख़बार 'ग्लोबल टाइम्स' ने ये जानकारी दी.
अख़बार के मुताबिक़ दोनों पक्षों ने सीमा क्षेत्रों में 'शांति और स्थिरता' बनाए रखने पर भी सहमति जताई है.
कुछ भारतीय मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि चीन ने भारत के लिए रेयर अर्थ निर्यात नियंत्रण हटा दिए हैं.
इस पर माओ निंग ने कहा कि उन्हें इस मुद्दे की 'जानकारी नहीं है'. उन्होंने ये ज़रूर कहा, कि "सिद्धांततः, चीनी पक्ष देशों के साथ संवाद और सहयोग को मज़बूत करने का इच्छुक है ताकि ग्लोबल प्रोडक्शन और सप्लाई चेन बिना किसी बाधा के जारी रह सके."
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, चीन भारत के कुल फ़र्टिलाइजर्स (कृषि उर्वरकों) की लगभग 30 फ़ीसदी सप्लाई करता है, साथ ही ऑटोमोबाइल कंपोनेंट्स के लिए रेयर अर्थ एलिमेंट्स और सड़क और शहरी इन्फ़्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए ज़रूरी टनल बोरिंग मशीनें भी उपलब्ध कराता है.
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चीन के बयान के मुताबिक़, वांग-जयशंकर बैठक पर भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने 'ताइवान को चीन का हिस्सा' कहा.
लेकिन भारत के विदेश मंत्रालय ने 19 अगस्त को जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि "चीनी पक्ष ने ताइवान का मुद्दा उठाया और भारत ने ये रेखांकित किया कि इस मुद्दे पर उसकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है." इसमें यह भी स्पष्ट किया गया कि "दुनिया के अन्य देशों की तरह, भारत के ताइवान के साथ आर्थिक, तकनीकी और सांस्कृतिक संबंध हैं और ये आगे भी जारी रहेंगे."
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को पर्यटकों पर चरमपंथी हमले की घटना के बाद मई में भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत पाकिस्तान में स्थित 'आतंकी ढांचों' पर हमला किया था.
भारतीय विदेश मंत्रालय की विज्ञप्ति में कहा गया, भारत ने चीन के साथ बातचीत में 'आतंकवाद का मुद्दा मज़बूती से उठाया' और इस बात का ज़िक्र किया गया कि शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के मूल उद्देश्यों में से एक 'आतंकवाद की बुराई का मुकाबला करना था'. भारतीय विज्ञप्ति के मुताबिक़, वांग यी ने भी कहा कि 'आतंकवाद से निपटने को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए.'
लेकिन चीन के रीडआउट (बयान) में वांग यी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात और एस. जयशंकर और डोभाल से बैठकों के दौरान 'आतंकवाद के मुद्दे का कोई उल्लेख नहीं था.'
वहीं भारतीय प्रेस विज्ञप्ति में यह भी कहा गया कि जयशंकर ने तिब्बत में यारलुंग सांगपो (जिसे भारत में ब्रह्मपुत्र नदी कहा जाता है) के निचले हिस्से पर चीन के प्रस्तावित मेगा डैम को लेकर भारत की चिंताओं को बताया गया और इस दिशा में 'पारदर्शिता की ज़रूरत' पर ज़ोर दिया गया.
लेकिन चीन के बयान में इस मुद्दे का भी कोई ज़िक्र नहीं था.
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चीन के सरकारी मीडिया ने वांग की भारत यात्रा को पॉज़िटिव तरीक़े से देखा और साथ ही इस बात पर भी ज़ोर दिया कि दोनों देश एक-दूसरे से बेहतर संबंध बनाने के इच्छुक हैं. इसमें अमेरिका के 'एकतरफ़ा दबाव' डालने की नीति का भी ज़िक्र किया.
अंग्रेज़ी भाषा के सरकारी अख़बार 'चाइना डेली' में 19 अगस्त को प्रकाशित संपादकीय में कहा गया कि वांग की भारत यात्रा को व्यापक रूप से प्रधानमंत्री मोदी की निर्धारित तियानजिन एससीओ शिखर सम्मेलन यात्रा की तैयारी के रूप में देखा जा रहा है.
संपादकीय में यह भी कहा गया कि अमेरिकी प्रशासन जब 'दुनिया के बाक़ी देशों के ख़िलाफ़ भयंकर टैरिफ़ युद्ध छेड़े हुए है', तब भारत, 'इस कठोर सच्चाई को मानने पर मजबूर हुआ कि अमेरिका के साथ करीबी संबंध होने के बावजूद भारत अमेरिकी टैरिफ़ से नहीं बच सका.
इसमें यह भी कहा गया कि "भारत, अमेरिकी प्रशासन से टकराव की स्थिति में है क्योंकि उसने रूसी तेल की ख़रीद बंद करने से इनकार कर दिया है. ऐसे में भारत रणनीतिक स्वायत्तता के महत्व को समझ रहा है और चीन के साथ संबंध सुधारने की कोशिश कर रहा है ताकि उसे रणनीतिक गुंजाइश और नीतिगत लचीलापन मिल सके."
सरकारी अख़बार 'ग्लोबल टाइम्स' की एक रिपोर्ट में भी कहा गया है कि भारत एशियाई बाज़ारों की ओर झुक रहा है क्योंकि 'निर्यात के लिए अमेरिकी बाज़ार पर उसकी भारी निर्भरता बढ़ते टैरिफ़ के मद्देनज़र एक कमज़ोरी बन गई है.'
नेशनलिस्ट न्यूज़ और कमेंट्री वेबसाइटग्वांचा में प्रकाशित एक लेख में फुदान यूनिवर्सिटी के लिन मिनवांग के एक कमेंट को जगह दी गई है जिसमें उन्होंने कहा कि "भारत चीन के साथ संबंध सुधारकर अमेरिका के साथ अपनी सौदेबाज़ी की ताक़त बढ़ाने की कोशिश कर सकता है."
हालांकि, लिन ने यह भी जोड़ा कि "चीन बेहतर संबंधों का स्वागत करता है, लेकिन राष्ट्रीय हितों से जुड़े मामलों पर कभी समझौता नहीं करेगा."
(बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित)
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