रसना तिवारी
शारदीय नवरात्रि का शुभारम्भ हो चुका है। मां दुर्गा के नौ स्वरूपों को समर्पित नवरात्रि का शाब्दिक अर्थ नौ रातें है। नवरात्रि वर्ष में चार बार ऋतु परिवर्तन के साथ आती है। प्रथम चैत्र नवरात्रि (मार्च-अप्रैल) बसंत ऋतु पर, द्वितीय आषाढ़ नवरात्रि (जून जुलाई) वर्षा ऋतु से पूर्व, तृतीय अश्विन/शारदीय नवरात्रि (सितंबर-अक्टूबर) शरद ऋतु की शुरुआत पर और चतुर्थ माघ/ गुप्त नवरात्रि (जनवरी-फरवरी) शीत ऋतु में आती है।
शारदीय नवरात्रि आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनाई जाती है। दशमी के दिन रावण वध और दशहरा (विजयदशमी) के दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव मनाया जाता है। नवरात्रि में शक्ति का जागरण प्रमुख हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार महिषासुर नाम का एक शक्तिशाली असुर था, जिसे कोई भी देवता पराजित नहीं कर पा रहे था, तब त्रिदेव (ब्रह्मा-विष्णु-महेश) की शक्तियों से देवी दुर्गा की उत्पत्ति हुई, जिन्होंने अन्ततः महिषासुर का वध किया, इसलिए इस पर्व को असत्य पर सत्य की विजय और अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतीक माना जाता है। इस पावन पर्व को धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं बल्कि सामाजिक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी लाभदायक माना गया है।
कलश (घट) स्थापना का महत्व और विधि
कलश स्थापना को हिंदू धर्म में मंगल व मां दुर्गा की उपस्थिति का प्रतीक माना है। यह नवग्रहों, पंचतत्वों और देवी-देवताओं का आह्वान करने वाला पात्र है। नवरात्रि के पहले दिन एक साफ मिट्टी या तांबे का कलश लें। उसमें शुद्ध जल भरें, साथ में चावल, सुपारी, द्रव्य (सिक्का), हल्दी की गांठ और पांच आम या अशोक के पत्ते डाल कर कलश के मुंह पर लाल वस्त्र में लपेटा हुआ नारियल रखें तथा कलश को चावल या मिट्टी से भरे पात्र पर रखें, जिसमें जौ बोए गए हों – यही घटस्थापना कहलाती है। कलश में रखा जल अमृत तुल्य है, जिसे नवरात्रि के अंत में इसे पूरे घर में छिड़कने से वातावरण पवित्र और सकारात्मक हो जाता है।
विशेष: जौ का उगना शुभ माना जाता है। जिस घर में जौ जल्दी और हरे-भरे उगते हैं, वहां देवी की विशेष कृपा मानी जाती है।
नवरात्रि में उपवास या व्रत का महत्व व विधि- व्रत का तात्पर्य केवल भोजन न करना नहीं है, बल्कि यह आत्मसंयम, आत्मशुद्धि और माता की भक्ति में लीन होने का माध्यम है। नवरात्रि के सभी नौ दिन या प्रथम/अष्टमी/नवमी तक व्रत रखें। प्रातः स्नान करके देवी की पूजा करें और संकल्प लें। दिनभर फलाहार या जलाहार लें। संध्या को आरती करें और फल या सात्विक भोजन करें।
अपनी सुविधानुसार निर्जला व्रत: बिना पानी का उपवास (बहुत कठिन), फलाहार व्रत: फल, दूध, मेवे का सेवन या केला, सेब, अनार, पपीता दूध, दही, मठा साबूदाना, सिंघाड़ा, कुट्टू का आटा (हलवा, पूरी) मूंगफली, मखाना सेंधा नमक (साधारण नमक नहीं) ले सकते हैं। एक समय सात्विक भोजन के साथ व्रत रख सकते है। पर ध्यान रहे कि लहसुन, प्याज, चावल, गेहूं का आटा, मांस, अंडा, शराब, तला-भुना खाना वर्जित है। व्रत के समय देवीस्तुति नाम जप व ध्यान आवश्यक है। बुरे विचार, झूठ, अपमानजनक भाषा से बचना चाहिए।
नवरात्रि के नौ दिनों के मंत्र व भोग-
* पहला दिन: मां शैलपुत्री – पर्वतराज हिमालय की पुत्री, नंदी पर सवार – ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः, -भोग: गाय का दूध और मिश्री या देशी घी से बना भोजन
* दूसरा दिन: मां ब्रह्मचारिणी – ज्ञान और तप की देवी, जापमाला और कमंडलधारिणी – ॐ देवी
ब्रह्मचारिण्यै नमः -भोग: मिश्री फल और शक्कर
* तीसरा दिन: मां चंद्रघंटा – वीरता और साहस की प्रतीक, घंटा धारण किए हुए – ॐ देवी चंद्रघंटायै नमः, -भोग: दूध केसर और खीर
* चौथा दिन: मां कूष्मांडा – ब्रह्मांड की सृष्टि करने वाली शक्ति – ॐ देवी कूष्मांडायै नमः, – भोग: मालपुआ या गुड़
* पांचवां दिन: मां स्कंदमाता – भगवान कार्तिकेय की माता – ॐ देवी स्कंदमातायै नमः, – भोग: केले
* छठा दिन: मां कात्यायनी – दानवों के विनाश हेतु अवतरित देवी – ॐ देवी कात्यायन्यै नमः, – भोग: शहद
* सातवां दिन: मां कालरात्रि – भय और अंधकार का नाश करने वाली – ॐ देवी कालरात्र्यै नमः- भोग: गुड़ या गुड़ से बनी चीजें
* आठवां दिन: मां महागौरी – सौंदर्य, करुणा और शांति की देवी – ॐ देवी महागौर्यै नमः, – भोग: नारियल और सफेद मिठाई
*नौवां दिन: मां सिद्धिदात्री – सिद्धियाँ प्रदान करने वाली शक्ति ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः, – भोग: तिल सफेद हलवा या मालपुए
मंत्र जाप का महत्व, विधि व समय- पूर्व या पश्चिम दिशा की ओर स्थान का चयन कर कंबल, कुश या ऊन का आसन प्रयोग करें। समय – ब्रह्म मुहूर्त प्रातः 4:00 बजे से 6:00 बजे तक का समय श्रेष्ठ माना जाता है या संध्या समय भी मंत्र जप किया जा सकता है। मंत्रों का जाप पूजन के उपरांत श्रद्धा अनुसार 11, 21 या 108 बार किया जा सकता है। यह दुर्गा सप्तशती के अर्गला स्तोत्र, कीलक और कवच पाठ के अति महत्वपूर्ण भाग है। विधि विधान से इनका पाठ करने से साधक की रक्षा होती है और मंत्रों में बल आता है। मंत्र जाप में रुद्राक्ष या कमलगट्टा की माला श्रेष्ठ मानी जाती है। माला को गर्दन न से ऊपर तक ना ले जाए।
मंत्र जाप का महत्व – मंत्र शब्द की उत्पत्ति संस्कृत की दो धातुओं से हुई है— “मन” (मनन करना) और “त्र” (रक्षा करना)। अर्थात, जो मन का चिंतन करके रक्षा करे, वह मंत्र कहलाता है। जब मंत्रों का उच्चारण श्रद्धा और एकाग्रता से किया जाता है, तो वह न केवल आध्यात्मिक शक्ति को जाग्रत करता है, बल्कि वातावरण को भी शुद्ध करता है। मंत्र जाप और देवी स्तुति से देवी दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त होती है। साथ ही मानसिक एकाग्रता बढ़ती है और शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। नवरात्रि में उपयोगी प्रमुख मंत्र- बीज मंत्र– सर्वश्रेष्ठ और प्रभावशाली- “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” है। यह मंत्र शक्ति की देवी को प्रसन्न करने वाला सर्वश्रेष्ठ बीज मंत्र है। प्रतिदिन 108 बार जाप करने से साधक के जीवन से संकट, भय व रोग दूर होते हैं तथा दुर्गा सप्तशती के मंत्र- “या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। मस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥” मंत्र माता के विभिन्न रूपों को प्रणाम करता है। इसे प्रतिदिन की पूजा में तीन बार दोहराना चाहिए।
कन्या पूजन का महत्व और विधि- नवरात्रि के अष्टमी या नवमी तिथि को कन्या पूजन का विधान है हिन्दू मान्यताओं के अनुसार कन्याओं में देवी के नौ रूप विद्यमान होते हैं। अतः दो से 10 वर्ष की आयु तक की नौ कन्याओं और एक बालक लंगूर स्वरूप को आमंत्रित कर उनके पांव धोकर आसन पर बैठाएं तथा हलवा, चना और खीर- पूड़ी का भोजन कराएं । तदुपरांत सभी कन्याओं का तिलक कर श्रद्धा अनुसार चुनरी, वस्त्र, किताबें, फल, दक्षिणा इत्यादि उपहार स्वरूप भेंट करें।
हवन विधि और आरती का विशेष महत्व – हवन को देवी की पूजा का चरम रूप माना गया है। हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित कर आम की लकड़ी, गाय का घी, कपूर, गुड़, तिल, और हवन सामग्री डाल कर “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे स्वाहा” मंत्र उच्चारण करते हुए महविष्य अर्पित किया जाता है, जिससे वातावरण शुद्ध और सकारात्मक ऊर्जा का संचार के साथ रोग, दोष और बाधाओं का नाश होता है।
आरती- प्रातः और संध्या देवी की आरती करने से वातावरण में भक्तिभाव और सकारात्मकता आती है। कुछ लोकप्रिय आरतियाँ- “जय अम्बे गौरी”, “ओ दुर्गा माता”, “जागो माता जागो भवानी” हैं। आरती के समय घंटी, घंटा और शंख का प्रयोग घर को ऊर्जावान बना कर नकारात्मकता को समाप्त करते हैं।
नवरात्रि का वैज्ञानिक दृष्टिकोण- नवरात्रि के दौरान उपवास करने से तन व मन की शुद्धि होती है। विषैले पदार्थों को बाहर निकालने में मदद मिलती है। नवरात्रि का समय ऋतु परिवर्तन के साथ मेल खाता है, जो स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। सामूहिक रूप से ध्यान और पूजा करने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह शरीर के मेटाबॉलिज़्म को सुधारता है और पाचनतंत्र को विश्राम देता है। व्रत के दौरान लिए जाने वाले हल्के और पौष्टिक आहार (जैसे मखाना, फल, मूंगफली) शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाते हैं। व्रत से शरीर का तापमान संतुलित रहता है, जिससे मौसमी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है। ध्यान, साधना और मंत्र जाप मस्तिष्क में सकारात्मक तरंगे उत्पन्न करते हैं, इससे ध्यान केंद्रित रहता है और मानसिक स्पष्टता बढ़ती है। सात्विक आहार,संयमित दिनचर्या और भक्ति भाव से तनाव में कमी आती है। इसलिए शक्ति की उपासना और आत्मा का शुद्धिकरण के लिए नवरात्रि व्रत में देवी के नौ स्वरूपों की पूजा करते हैं।
नवरात्रि का महत्व समाजिक दृष्टि से- नवरात्रि का त्योहार समुदाय की एकता और सहयोग को बढ़ावा देता है। नवरात्रि भारतीय संस्कृति की समृद्ध विरासत का हिस्सा है, जो हमारी परंपराओं और मूल्यों को संरक्षित करती है। नवरात्रि का त्योहार नैतिक मूल्यों जैसे कि संयम, आत्म-शुद्धि और सेवा को बढ़ावा देता है।
आधुनिक युग में नवरात्रि – नवीन तकनीकी सुविधा और डिजिटल के माध्यम से घर बैठे मंदिर के दर्शन एवं धार्मिक संस्थाओं की जानकारी, ऑनलाइन ग्रुप बनाकर वर्चुअल कीर्तन एवं विभिन्न एप्स के माध्यम से ऑनलाइन पूजा सामग्री घर तक मंगवाना आसान हो गया है। भक्ति गीत, संदेश, पारंपरिक गीतों पर आधारित गरबा डांडिया, जगराता या देवी से संबंधित कोई भी कथा इत्यादि के शॉर्ट वीडियो एवं रील फेसबुक इंस्टाग्राम व्हाट्सएप ट्विटर आदि के जरिए एक दूसरे तक आसानी से भेजे जा रहे हैं।
पर्यावरण के प्रति समाज में जागरूकता – वर्तमान समय में इको फ्रेंडली पूजा सामग्री का प्रयोग अधिक देखा जा रहा है, जिसमें मिट्टी व गाय के गोबर से बने दीपक और मूर्तियां का उपयोग तथा डिजिटल निमंत्रण कार्ड की जगह ई- आमंत्रण पत्र एक दूसरे को भेजना, जिससे कि कागज की बर्बादी को रोका जा सके, साथ ही मूर्ति विसर्जन के लिए घर में ही कृत्रिम तालाब या टब में मूर्ति विसर्जन करना, जिससे नदियों और झीलों का प्रदूषण रोका जा सके।
इसलिए कहा जा सकता है कि सनातन धर्म में पर्व एक अलौकिक शक्ति है। यह पर्व हमें एक दूसरे के प्रति व्यवहारात्मक, सरल और सहज रहने तथा संस्कृति को संरक्षित व संवर्धित रखने का भी संदेश देते हैं।
(लेखिका, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / मोहित वर्मा
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