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हर त्यौहार पर क्यों टूट पड़ते हैं ग्राहक, जानिए मन और बाजार का क्या है कनेक्शन

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त्यौहारों का मौसम देश में सिर्फ पूजा और पाठ या खुशियों का समय ही नहीं होता है बल्कि यह देश की अर्थव्यवस्था में नई जान दलाता देता है। दिवाली जैसे पर्वों पर शॉपिंग मॉल्स से लेकर ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स, ऑटो शोरूम, ज्वेलरी स्टोर्स और रियल एस्टेट तक हर सेक्टर में जबरदस्त हलचल देखने को मिलती है। पर इस आर्थिक जोश के पीछे एक छुपी हुई ताकत होती है इन्वेस्टर्स और कस्टमर्स की साइकोलॉजिकल टेंडेंसीज़। यह वही मानसिक झुकाव हैं जो त्यौहारों के समय हमारी खरीदारी और इन्वेस्टमेंट के फैसलों पर असर दालती है।



उम्मीदों की उड़ान या खतरे की घंटी

त्यौहारों के समय आमतौर लोग ज्यादा उत्साह हो जाते हैं। इसे ऑप्टिमिज़्म बायस कहा जाता है जिसमें व्यक्ति यह मान लेता है कि भविष्य में सब कुछ अच्छा ही होगा। दिवाली जैसे त्यौहारों पर लोग ज्यादा खर्च करते हैं मानो समृद्धि उनके दरवाजे पर खड़ी हो। यही सकारात्मकता कंपनियों और इन्वेस्टर्स तक भी पहुंचती है नए प्रोडक्ट लॉन्च होते हैं, स्टॉक्स में तेजी आती है, और मुहूर्त ट्रेडिंग सेशन में भागीदारी बढ़ती है। लेकिन कभी-कभी यह वास्तविकता से मेल नहीं खाता और ऐसी चीजों पर लोग अक्सर खर्च कर बैठते हैं जिनकी उन्हें जरूरत भी नहीं होती है।





त्यौहारों में सामाजिक रिवाज

त्यौहारों के समय खरीदारी एक तरह की सामाजिक रिवाज बन जाता है। जैसे सब लोग अगर कुछ खरीद रहे हैं तो हम भी खरीदने लगते हैं। इस भावना को हर्ड बिहेवियर कहते हैं। हर कोई दोस्तों, रिश्तेदार या सोशल मीडिया से प्रेरित होकर ज्यादा खर्च करते चले जाते है या इन्वेस्टमेंट करते हैं। कंपनियां इस मौके का फायदा उठाकर प्रचार, छूट और ऑफर देती हैं। लेकिन अगर यह मांग ज्यादा समय तक न बनी रहे तो कंपनियों को नुकसान भी होता है और कस्टमर्स को बाद में पछतावा का सामना करना पदता है।



बोनस और FOMO का खेल

त्यौहारों के समय जो बोनस या उपहार मिलता है उसे लोग फेस्टिव बजट मानकर अलग से खर्च करते हैं। इसे वे आम खर्च से अलग समझते हैं और बिना सोचे-समझे पैसे खर्च कर देते हैं। इसके अलावा आज के डिजिटल युग में FOMO (Fear of Missing Out) भी बड़ी भूमिका निभाता है। सीमित समय के ऑफर, शुभ दिन की खरीदारी का दबाव, और सोशल मीडिया पर दूसरों को खरीदारी करते देखना, ये सब मिलकर लोगों को ज्यादा खर्च करने के लिए प्रेरित करते हैं।





खास बात : त्यौहारों में देश की अर्थव्यवस्था को एक बड़ा बूस्ट मिलता है लेकिन इसके पीछे छिपे बिहेवियरल बायसिस को समझना जरूरी है। तभी हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि त्यौहारों में आने वाली समृद्धि सिर्फ तात्कालिक न होकर लंबे समय तक टिकने वाली हो।

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