चीन ने सोने के भंडार को 4000 टन तक पहुंचा दिया हैImage Credit source: gemini
चीन ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है, जिसका प्रभाव वैश्विक बाजारों में महसूस किया जा रहा है। उसने अपने सोने के भंडार में अभूतपूर्व वृद्धि की है। प्रारंभ में, चीन के पास लगभग 500 टन सोना था, लेकिन अब यह आंकड़ा 4000 टन के पार पहुंच गया है। यह केवल एक निवेश नहीं, बल्कि एक रणनीतिक योजना का हिस्सा माना जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम डॉलर के वर्चस्व को चुनौती देने के लिए उठाया गया है, और चीन को किसी संभावित वैश्विक आर्थिक संकट का पूर्वाभास हो सकता है। इस कदम ने पूरी दुनिया को चौंका दिया है।
चीन का सोने का भंडार: एक रणनीतिक योजना
चीन ने 3500 टन सोने की खरीद एक दिन में नहीं की है। यह एक गहरी और सोची-समझी योजना का हिस्सा है। 2025 की शुरुआत से, चीन के केंद्रीय बैंक ने बिना किसी हलचल के लगातार सोने की खरीदारी की। यह खरीदारी धीरे-धीरे और रणनीतिक तरीके से की गई। हर महीने थोड़ी मात्रा में सोना खरीदा गया, और यह प्रक्रिया कभी नहीं रुकी। जब तक अन्य बाजार इस पैटर्न को समझ पाते, तब तक चीन ने अपने पास एक विशाल सोने का भंडार बना लिया था।
दिलचस्प बात यह है कि यह खरीदारी उस समय हुई जब वैश्विक बाजारों में सोने की कीमतें पहले से ही ऊंचाई पर थीं। आंकड़े बताते हैं कि कीमतें 30 प्रतिशत तक बढ़ चुकी थीं, फिर भी चीन ने इस बढ़ती कीमत की परवाह नहीं की। यह स्पष्ट है कि उसके लिए यह सौदा केवल मुनाफे का नहीं, बल्कि भविष्य की सुरक्षा सुनिश्चित करने का था। यह न केवल अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का प्रयास है, बल्कि वैश्विक मंच पर अपनी आर्थिक ताकत का प्रदर्शन भी है।
क्या डॉलर का वर्चस्व समाप्त होगा?
चीन के इस कदम से वैश्विक वित्तीय बाजारों में हलचल मच गई है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि अमेरिकी डॉलर का भविष्य क्या होगा। दशकों से, अधिकांश व्यापार अमेरिकी डॉलर में होता आया है, जिससे अमेरिका को एक अद्वितीय शक्ति मिली है। लेकिन चीन की यह सोने की खरीदारी इस व्यवस्था को सीधा चुनौती दे रही है।
अर्थशास्त्री इसे 'डी-डॉलराइज़ेशन' के रूप में देख रहे हैं, यानी डॉलर पर निर्भरता कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम। चीन स्पष्ट रूप से अपने विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर की हिस्सेदारी को तेजी से कम करना चाहता है। खबरें हैं कि वह अपने अमेरिकी बॉंड्स बेचकर सोना खरीद रहा है। इसका असर भी तुरंत दिखने लगा है, और सोने की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं।
क्या चीन किसी बड़े संकट की तैयारी कर रहा है?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि चीन को अचानक इतने सोने की आवश्यकता क्यों पड़ी? क्या उसे किसी वैश्विक संकट का अंदेशा है, जिसके बारे में बाकी दुनिया अभी अनजान है? इतिहास बताता है कि सोना हमेशा से एक सुरक्षित पनाहगाह रहा है। जब भी कोई बड़ा आर्थिक या भू-राजनीतिक तूफान आता है, तो सोने की चमक ही भरोसा देती है।
4000 टन सोने का यह विशाल भंडार चीन को किसी भी आने वाले संकट में मजबूती से खड़े रहने की शक्ति देगा। यह कदम वैश्विक अर्थव्यवस्था को बहुध्रुवीय बनाने की दिशा में एक स्पष्ट संकेत है। इसका मतलब है कि एक ऐसी दुनिया, जो केवल अमेरिका और उसके डॉलर के इर्द-गिर्द नहीं घूमती, बल्कि जिसमें चीन जैसी अन्य शक्तियाँ भी बराबरी की हैसियत रखती हैं।
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