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महिला नागा साधु बनने की प्रक्रिया: एक गहन दृष्टि

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महिला नागा साधु: एक चुनौतीपूर्ण यात्रा

महिला नागा साधु बनना एक कठिन कार्य है, जिसमें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। साधु बनने की प्रक्रिया को एक नए जन्म के समान माना जाता है, जिसमें ध्यान, तपस्या और संयम की आवश्यकता होती है। इसलिए, यह महिलाओं के लिए और भी चुनौतीपूर्ण होता है। भारत में महिलाएं भी नागा साधु बनने का प्रयास करती हैं, जिसके लिए उन्हें कई वर्षों की कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है।


महिला नागा साधु बनने की प्रक्रिया

महिलाओं को गेरुआ वस्त्र पहनने की अनुमति होती है और उन्हें तिलक भी लगाना होता है। भारत में कई नागा साधु महिलाएं नेपाल से आती हैं और उन्हें नागा साधु बनने के लिए कठिन तप और परीक्षाओं का सामना करना पड़ता है।


नागा साधु बनने से पहले, महिलाओं को 6 से 12 वर्षों तक ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। जब वे इस प्रक्रिया को सफलतापूर्वक पूरा करती हैं, तो उनके गुरु उन्हें नागा साधु बनने की अनुमति देते हैं। इसमें सिर मुंडवाना, नारंगी या लाल वस्त्र पहनना और हथियार रखना शामिल है। आधिकारिक रूप से साधु बनने के बाद, महिला को 'मां' के रूप में संबोधित किया जाता है।


पहले दस वर्षों में उन्हें कठिन प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि वे साधु बनकर कठिन साधना कर सकें। नागा साधु बनने के दौरान, महिला को यह साबित करना होता है कि वह पूरी तरह से ईश्वर के प्रति समर्पित है। उसे सांसारिक सुखों से कोई लगाव नहीं होना चाहिए। वह अपने पिछले जीवन को छोड़कर आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश के लिए तैयार होती है।


पिंडदान और नई शुरुआत

नागा साधु बनने से पहले, महिला को अपना पिंडदान करना होता है, जिसका अर्थ है कि वह अपनी पुरानी जिंदगी को पीछे छोड़कर नई जिंदगी में पूरी तरह समर्पित हो जाती है। इस प्रक्रिया में वह अपने पिछले जीवन को समाप्त मानती है। महिलाओं को संन्यासी बनाने की प्रक्रिया आचार्य महामंडलेश्वर द्वारा पूरी की जाती है। नागा साध्वी परंपरा ने विदेशी महिलाओं को भी आकर्षित किया है, जिसका मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म और वैदिक परंपराओं की रक्षा करना है।


महिला और पुरुष नागा साधु में भिन्नताएँ

पुरुष और महिला नागा साधुओं के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर है। पुरुष नागा साधु आमतौर पर नग्न रहते हैं, जबकि महिलाएं गेरुए रंग के वस्त्र पहनती हैं। हालांकि, अखाड़े में रहते समय, महिला नागा साधु भी बिना वस्त्र के रह सकती हैं। कुंभ मेले में, महिला नागा साधु अपने समूह के साथ स्नान करती हैं, लेकिन पुरुषों का स्नान पहले होता है।


महिला नागा साधुओं को पुरुषों के समान सम्मान प्राप्त होता है। वे भी कुंभ के पवित्र स्नान में भाग लेती हैं। उनकी जीवनशैली साधारण होती है, जिसमें वे साधारण भोजन करती हैं और आमतौर पर जमीन पर सोती हैं, जिसके लिए वे चटाई या चादर का उपयोग करती हैं।


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