New Delhi, 28 अक्टूबर . दक्षिण India अपने सांस्कृतिक कला और पुरातत्व धरोहर के लिए जाना जाता है. यहां कई चमत्कारी मंदिर मौजूद हैं.
आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में कनक दुर्गा मंदिर है, जो अपनी वास्तुकला के लिए जाना जाता है. मंदिर का इतिहास महाIndia और महिषासुर से जुड़ा है. दूर-दूर से भक्त मंदिर में मां दुर्गा के शक्ति रूप के दर्शन के लिए आते हैं.
माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना खुद ही हुई है. इस मंदिर को स्वयंप्रभु मंदिर माना जाता है. मंदिर को लेकर कई किंवदंतियां मौजूद हैं. कहा जाता है कि महिषासुर का वध करने के बाद ऋषि इंद्रकील के कहने पर मां दुर्गा ने पर्वत को अपना स्थायी निवास चुना था. मां के विराजमान होने पर ऋषि इंद्रकील ने उनकी आराधना करने के लिए मंदिर का निर्माण कराया. मंदिर के परिसर में भगवान शिव और कार्तिकेय का भी मंदिर है, जिसकी स्थापना बाद में चालुक्यों द्वारा की गई.
मान्यता है कि इस मंदिर में जो भी भगवान शिव की पूजा बेला के फूलों से करता है, तो उसकी सारी मनोकामना पूरी होती है. बेला के फूलों से पूजा होने की वजह से भगवान शिव को मल्लेश्वर स्वामी भी कहा गया.
मंदिर के इतिहास को महाIndia से भी जोड़ा गया है. किंवदंतियों की मानें तो अर्जुन को मंदिर में पशुपति अस्त्र मिला था. इस मंदिर में अर्जुन ने भगवान शिव और दुर्गा मां की कठोर तपस्या की थी, जिसके फलस्वरूप उन्हें पशुपति अस्त्र प्राप्त हुआ. इस अस्त्र का इस्तेमाल अर्जुन ने किसी पर नहीं किया था क्योंकि भगवान शिव ने चेतावनी दी थी कि अगर वह किसी भी मनुष्य पर इसका इस्तेमाल करते हैं तो पूरी पृथ्वी का विनाश हो जाएगा.
इस मंदिर को शक्ति का प्रतीक माना जाता है क्योंकि मंदिर में मां कनक भगवान शिव के दाहिनी तरफ विराजित हैं. आमतौर पर मंदिरों में मां की प्रतिमा बाईं तरफ विराजमान होती है. शत्रुओं पर विजय पाने के लिए इस मंदिर में खासतौर पर लोग पूजा करने आते हैं. कहते हैं कि मां कनक स्वयं शत्रुओं का नाश करती हैं और विजय दिलाती हैं. नवरात्रों में मंदिर में खास तरीके का अनुष्ठान होता है, जहां कृष्णा नदी से सटे इस मंदिर में मां को हंस के आकार की नाव में नौकाविहार कराया जाता है.
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पीएस/एबीएम
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