बच्चों को सही परवरिश देना एक चुनौतीपूर्ण यात्रा होती है, जिसमें माता-पिता को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। मनोविज्ञान के अनुसार, अक्सर हमारा मन उन कामों को करने के लिए ज्यादा आकर्षित होता है, जिन पर पाबंदी लगी हो। यह बात बच्चों पर भी लागू होती है। ज्यादातर बच्चे वही काम करने की कोशिश करते हैं, जिसको करने से उन्हें मना किया जाता है और पकड़े जाने पर अपनी गलती छिपाने के लिए झूठ बोलने लगते हैं। उदाहरण के लिए, कई छोटे बच्चे मिट्टी खाते हैं, लेकिन जब उनसे पूछा जाता है तो वे तुरंत मना कर देते हैं। बच्चों का झूठ बोलना उनकी शरारतों का हिस्सा हो सकता है और इसे बचपन का सामान्य व्यवहार माना जाता है। लेकिन, जब यह आदत बार-बार दोहराई जाने लगे और बात-बात पर झूठ बोलना उनकी आदत बन जाए, तो यह चिंता का विषय बन सकता है। यदि इस आदत को समय रहते सही नहीं किया गया, तो यह बड़े होने पर माता-पिता के लिए गंभीर समस्या का कारण बन सकता है। इसलिए यह बेहद जरूरी है कि बचपन से ही बच्चों के व्यवहार और आदतों पर ध्यान दिया जाए, क्योंकि अगर इसे नजरअंदाज किया गया तो यह आदत किशोरावस्था में बड़े रूप में सामने आ सकती है। सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि बच्चों में झूठ बोलने की आदत कैसे विकसित होती है।
क्यों झूठ बोलते हैं बच्चे?
मनोविज्ञान के अनुसार बच्चों का व्यवहार और उनकी आदतें उनके आसपास के माहौल से बहुत प्रभावित होती हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो बच्चों का पहला स्कूल उनका घर और पहला शिक्षक उनके माता-पिता होते हैं। बच्चे जो कुछ भी अपने माता-पिता या परिवार को करते हुए देखते हैं, वही आदतें वे भी अपनी जिंदगी में अपना लेते हैं। हालांकि माता-पिता अपनी तरफ से बच्चों को अच्छी परवरिश देने का पूरा प्रयास करते हैं, लेकिन अक्सर वे यह भूल जाते हैं कि उनकी छोटी-छोटी आदतें भी बच्चों पर बड़ा असर डाल सकती हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, अमेरिका द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि जिन बच्चों ने पांचवी कक्षा तक के सफर में किसी वयस्क को बार-बार झूठ बोलते देखा था, उनमें अपनी गलती छिपाने के लिए झूठ बोलने की आदत विकसित हो गई थी। इसका मतलब यह है कि भले ही आप अपने बच्चे को हमेशा सच बोलने की शिक्षा देते हों, लेकिन अगर बच्चे ने आपको झूठ बोलते देखा है, तो वह भी इसे अपने व्यवहार में अपना सकता है।
इसके अलावा, जब बच्चे अपने परिवार या माता-पिता के बीच सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं, तो वे नई-नई कहानियां गढ़ने लगते हैं। कई बार बच्चे अपने माता-पिता को तनाव से बचाने के लिए भी झूठ बोलने लगते हैं। इसके अलावा, टीवी और इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री भी बच्चों के व्यवहार और आदतों को प्रभावित करती है।
इसके अलावा कुछ अन्य कारण भी हो सकते हैं जिनकी वजह से बच्चे झूठ बोलने लगते हैं। जैसे कि कोई गलती हो जाने पर वे सजा के डर से सच छिपाने की कोशिश करते हैं। कभी-कभी वे दूसरों का ध्यान आकर्षित करने के लिए काल्पनिक कहानियां बनाते हैं। किशोरावस्था में, सामाजिक दबाव और अपनी छवि को बेहतर दिखाने के लिए भी बच्चे अपने बारे में बढ़ा-चढ़ा कर बताते हैं। छोटे बच्चे अक्सर कल्पना और वास्तविकता के बीच अंतर नहीं कर पाते, जिससे वे गलत तथ्य प्रस्तुत करने लगते हैं।
यदि पारिवारिक माहौल अच्छा नहीं होता, तो बच्चे तनाव में आ सकते हैं। इस स्थिति में वे अपनी एक आभासी दुनिया बना लेते हैं और उसे सच मानने लगते हैं। हालांकि बच्चों में झूठ बोलने की आदत माता-पिता के लिए चिंता का विषय हो सकती है, लेकिन यदि सही रणनीति बनाई जाए तो इससे छुटकारा पाया जा सकता है।
बातचीत से निकलेगा हल
बालपन से ही बच्चों के साथ एक खुला और सहज संवाद स्थापित करना बहुत महत्वपूर्ण है, ताकि वे बिना किसी डर और झिझक के अपनी समस्याओं और विचारों को आपके साथ साझा कर सकें। उदाहरण के लिए, जब बच्चा स्कूल से घर वापस आए, तो उसे मुस्कुराकर स्वागत करें और उसकी दिनभर की गतिविधियों में दिलचस्पी दिखाएं। इससे बच्चे को यह महसूस होगा कि आप उसकी जिंदगी में कितनी दिलचस्पी ले रही हैं। इसके अलावा, जो अच्छी आदतें आप उसे सिखाना चाहती हैं, उन्हें निर्देश के रूप में देने के बजाय, उदाहरणों के जरिए समझाएं। बच्चों को सीखने के लिए केवल शब्दों की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि वे अपने आसपास के उदाहरणों से भी बहुत कुछ सीखते हैं।
संयम से लें काम
बच्चों का मन बहुत चंचल और जिज्ञासु होता है, इसलिए जरूरी नहीं कि कोई बात उन्हें एक ही बार में समझ आ जाए। बालपन से किशोरावस्था तक, बच्चे रोज़ कुछ नया सीखते और अनुभव करते हैं, जो उनकी जिज्ञासा और कौतूहल को बढ़ाता है। ऐसे में, आपको धैर्य से काम लेना चाहिए। अपने बच्चे की बात पर तुरंत प्रतिक्रिया देना उसे आपसे दूर कर सकता है। इसके बजाय, शांत रहकर उसकी बातों को सुनें, और यदि आप उससे सहमत नहीं हैं तो उसे आराम से अपना नजरिया समझाने की कोशिश करें।
बनें सकारात्मक रोल मॉडल
बच्चे अपने माता-पिता और अन्य बड़ों की आदतों और व्यवहारों की नकल करते हैं, जो धीरे-धीरे उनकी आदतों का हिस्सा बन जाता है। इसीलिए, बच्चों के सामने एक आदर्श और सकारात्मक व्यक्तित्व प्रस्तुत करना जरूरी है। इससे बच्चे आपसे अच्छी आदतें सीखेंगे और जीवन में उनका पालन करेंगे। जो नियम आप अपने बच्चे के लिए बनाते हैं, स्वयं भी उन पर अमल करें। जब बच्चे आपको सच बोलते हुए देखेंगे, तो उन्हें भी ऐसा करने के लिए प्रेरणा मिलेगी। अपने व्यवहार से आप उन्हें यह सिखा सकते हैं कि सच्चाई और ईमानदारी हमेशा सर्वोत्तम होती है।
दबाव ना बनाएं
हर बच्चा दूसरे से अलग होता है, और यह समझना बहुत जरूरी है कि हर बच्चे की अपनी विशेषताएं और क्षमताएं होती हैं। फिर भी, कई बार माता-पिता समाज के सामने अपने बच्चे को बेहतर दिखाने के लिए उस पर अतिवादी अपेक्षाएं डालने लगते हैं। इसके परिणामस्वरूप, बच्चा बहुत अधिक दबाव महसूस करता है और उस दबाव से बचने के लिए झूठ बोलने लगता है। यह दबाव उसकी मानसिक स्थिति को नुकसान पहुंचा सकता है। इसके बजाय, माता-पिता को बच्चे पर अपने सपनों का बोझ लादने की बजाय उसे अपनी गति और क्षमता के अनुसार आगे बढ़ने देना चाहिए। अगर बच्चा बार-बार झूठ बोल रहा है, तो गुस्से से प्रतिक्रिया देने की बजाय, उसकी झूठ बोलने के पीछे का कारण समझने का प्रयास करें और धैर्य से काम लें। जब बच्चा देखेगा कि उसे सच बोलने पर सजा नहीं, बल्कि प्यार और समर्थन मिलता है, तो वह धीरे-धीरे झूठ बोलने की आदत छोड़ देगा।
गलतियां स्वीकारने की आदत
बचपन में गलतियां करना स्वाभाविक है। लेकिन बहुत से माता-पिता अपने बच्चों को अनुशासन में रखने के लिए उनकी हर छोटी-सी गलती पर उन्हें सजा देने लगते हैं। इससे बच्चे के मन में सजा का डर बैठ जाता है और वह अपनी गलती छिपाने के लिए झूठ बोलने लगता है। इसके बजाय, माता-पिता को बच्चे को यह विश्वास दिलाना चाहिए कि अगर वह अपनी गलती स्वीकार करता है, तो उसे सजा नहीं, बल्कि समाधान खोजने में मदद मिलेगी। ऐसा करने से बच्चे में माता-पिता के प्रति विश्वास बढ़ेगा और वह झूठ बोलने की आदत छोड़ने में सक्षम होगा।
नियम और अपेक्षाएं स्पष्ट रखें
सभी माता-पिता अपने बच्चों को स्नेह और प्यार से पालते हैं और उनकी सभी जरूरतों का ध्यान रखते हैं। लेकिन इसके साथ ही घर में नियमों की अनदेखी नहीं होनी चाहिए। बच्चों के लिए एक खुला और सहज माहौल बनाएं, जहां वे बिना डर के अपनी असहमति या विचार व्यक्त कर सकें। लेकिन साथ ही उन्हें यह भी समझाएं कि ईमानदारी का महत्व क्या है, ताकि वे अपनी बात मनवाने के लिए झूठ का सहारा ना लें। उन्हें पारिवारिक मूल्यों और अनुशासन के बारे में अवगत कराएं, ताकि वे समझ सकें कि सच्चाई से अधिक महत्वपूर्ण कुछ नहीं है।
प्रेरक उदाहरणों का इस्तेमाल
कुछ शोधों में यह पाया गया है कि बच्चों को अच्छी आदतें सिखाने के लिए सकारात्मक और प्रेरक कहानियां बहुत प्रभावी होती हैं। जैसे केवल यह कहना कि, "झूठ बोलना बुरी आदत है," बच्चों पर ज्यादा असर नहीं डालता। इसके बजाय, ईमानदारी और सच्चाई की जीत पर आधारित प्रेरक कहानियां उन्हें अधिक आकर्षित करती हैं। शब्दों से समझाने के बजाय, उन्हें ऐसी घटनाओं या किताबों से परिचित करवाएं, जिनमें ईमानदारी और सच्चाई की महत्ता दिखाई जाती हो। इससे बच्चों को न केवल यह समझने में मदद मिलेगी, बल्कि वे अपने जीवन में इन गुणों को अपनाने के लिए प्रेरित भी होंगे।
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