जोहरान ममदानी का न्यूयॉर्क के मेयर का चुनाव जीतना अमेरिका की राजनीति में ऐतिहासिक मोड़ है। जब प्रवासी वहां ज्वलंत मुद्दा बने हुए हैं, तब पहली बार एक मुस्लिम नेता का अमेरिका की वित्तीय राजधानी की कमान संभालना अमेरिकी समाज में बढ़ती विविधता और स्वीकार्यता का संकेत है। उनकी जीत बताती है कि अमेरिकी नई सोच के साथ चलने के लिए तैयार हैं।
नई राजनीति । ममदानी ने लगभग एक साल पहले जब अपने कैंपेन की शुरुआत की थी, तब किसी ने नहीं सोचा था कि वह इतिहास रचने जा रहे हैं। जून में वह डेमोक्रेटिक प्राइमरी में जीते और पार्टी की तरफ से उम्मीदवार चुने गए, तब सबका ध्यान उनकी ओर गया। 34 साल के जिस युवा को उसके कम अनुभव की वजह से पहले चुनावी लड़ाई में कमजोर माना जा रहा था, बाद में वही सबसे अहम फैक्टर साबित हुआ।
जनता से जुड़ाव । उनकी खासियत रही जनता से जुड़ाव। उन्होंने विज्ञापनों पर खर्च करने के बजाय सीधे लोगों से संवाद किया। आम शहरियों की समस्याओं को समझा और वादा किया कि वह न्यूयॉर्क को रहने के लिए ज्यादा बेहतर जगह बनाएंगे। उनकी चुनावी घोषणाओं को देखें तो लगता है कि वह किसी विकासशील देश की बात कर रहे हैं - फ्री पब्लिक ट्रांसपोर्ट, किराये पर लगाम और न्यूनतम वेतन। लेकिन, परिणाम से जाहिर है कि वह नब्ज पकड़ने में सफल रहे। उन्होंने उन समस्याओं को छुआ, जिन्हें दूसरे ज्यादा अनुभवी नेता नजरअंदाज करते रहे।
भरोसा जीता । ममदानी ने केवल वादे ही नहीं किए, यह भी बताया कि वह इन्हें पूरा कैसे करने वाले हैं। उन्होंने कॉरपोरेट टैक्स बढ़ाकर और न्यूयॉर्क के अमीरों पर 2% अतिरिक्त कर लगाकर योजनाओं के लिए पैसा जुटाने की बात कही। इससे मध्यम वर्ग उनसे जुड़ता चला गया। एक लाख लोगों का वॉलंटियर बनना और 20 लाख से अधिक वोटिंग से पता चलता है कि इस बार जनता बदलाव का मन बना चुकी थी।
अगली चुनौती । ममदानी ने जीत के बाद जवाहरलाल नेहरू को कोट किया। उन्होंने इस परिणाम को बदलाव के लिए समर्थन बताया और कहा कि न्यूयॉर्क ने ट्रंप को हराने का रास्ता दिखा दिया है। इस जीत ने पस्त डेमोक्रेट्स में नई जान भरी होगी, लेकिन चुनौती अब शुरू होती है। चुनावी प्रचार के दौरान ट्रंप और ममदानी में जैसी तल्खी दिखी, वैसा कभी नहीं हुआ था। ट्रंप ने धमकी दी थी कि अगर ममदानी जीते तो वह न्यूयॉर्क के फेडरल फंड्स में कटौती कर देंगे। खैर, ममदानी के सामने अब अपने वादों को पूरा करने की चुनौती है।
नई राजनीति । ममदानी ने लगभग एक साल पहले जब अपने कैंपेन की शुरुआत की थी, तब किसी ने नहीं सोचा था कि वह इतिहास रचने जा रहे हैं। जून में वह डेमोक्रेटिक प्राइमरी में जीते और पार्टी की तरफ से उम्मीदवार चुने गए, तब सबका ध्यान उनकी ओर गया। 34 साल के जिस युवा को उसके कम अनुभव की वजह से पहले चुनावी लड़ाई में कमजोर माना जा रहा था, बाद में वही सबसे अहम फैक्टर साबित हुआ।
जनता से जुड़ाव । उनकी खासियत रही जनता से जुड़ाव। उन्होंने विज्ञापनों पर खर्च करने के बजाय सीधे लोगों से संवाद किया। आम शहरियों की समस्याओं को समझा और वादा किया कि वह न्यूयॉर्क को रहने के लिए ज्यादा बेहतर जगह बनाएंगे। उनकी चुनावी घोषणाओं को देखें तो लगता है कि वह किसी विकासशील देश की बात कर रहे हैं - फ्री पब्लिक ट्रांसपोर्ट, किराये पर लगाम और न्यूनतम वेतन। लेकिन, परिणाम से जाहिर है कि वह नब्ज पकड़ने में सफल रहे। उन्होंने उन समस्याओं को छुआ, जिन्हें दूसरे ज्यादा अनुभवी नेता नजरअंदाज करते रहे।
भरोसा जीता । ममदानी ने केवल वादे ही नहीं किए, यह भी बताया कि वह इन्हें पूरा कैसे करने वाले हैं। उन्होंने कॉरपोरेट टैक्स बढ़ाकर और न्यूयॉर्क के अमीरों पर 2% अतिरिक्त कर लगाकर योजनाओं के लिए पैसा जुटाने की बात कही। इससे मध्यम वर्ग उनसे जुड़ता चला गया। एक लाख लोगों का वॉलंटियर बनना और 20 लाख से अधिक वोटिंग से पता चलता है कि इस बार जनता बदलाव का मन बना चुकी थी।
अगली चुनौती । ममदानी ने जीत के बाद जवाहरलाल नेहरू को कोट किया। उन्होंने इस परिणाम को बदलाव के लिए समर्थन बताया और कहा कि न्यूयॉर्क ने ट्रंप को हराने का रास्ता दिखा दिया है। इस जीत ने पस्त डेमोक्रेट्स में नई जान भरी होगी, लेकिन चुनौती अब शुरू होती है। चुनावी प्रचार के दौरान ट्रंप और ममदानी में जैसी तल्खी दिखी, वैसा कभी नहीं हुआ था। ट्रंप ने धमकी दी थी कि अगर ममदानी जीते तो वह न्यूयॉर्क के फेडरल फंड्स में कटौती कर देंगे। खैर, ममदानी के सामने अब अपने वादों को पूरा करने की चुनौती है।
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