नई दिल्ली: अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या कुछ ही वर्षों में ‘बड़ी आबादी’ के साथ दिल्ली-एनसीआर में ‘सेट’ होते चले गए। न सुरक्षा एजेंसियां रोक सकीं, न राज्यों की पुलिस खोज सकी और ना ही दिल्ली पुलिस की स्पेशल ब्रांच इनका पता लगा सकी। सरकारी सिस्टम का कामकाज कागजों में ही चलता रहा और उसकी खामियों का फायदा उठाकर भारत-बांग्लादेश बॉर्डर से लेकर दिल्ली तक घुसपैठ होती रही। अब दिल्ली-एनसीआर की बड़ी आबादी में मिक्स हो चुके बांग्लादेशियों को खोज पाना पुलिस के लिए बड़ी चुनौती है। अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिए एजेंटों के जरिए इतने मजबूत जाली दस्तावेज तैयार करके आबादी में सेट हो चुके हैं कि उनके दस्तावेजों पर दर्ज वेस्ट बंगाल के परगना, वर्धमान, कालीकट, नादिया जैसे इलाकों के एड्रेस पर जाकर वेरिफिकेशन कर पाना मुश्किल है। दिल्ली पुलिस की तरफ से वेस्ट बंगाल पुलिस को भेजे जाने वाले एड्रेस वेरिफिकेशन में वहां की पुलिस कोई मदद भी नहीं कर रही। फर्जी दस्तावेज से लेकर एनसीआर तक का ‘ठेका’इन बांग्लादेशियें के लिए दिल्ली एनसीआर व देश के बड़े महानगर न सिर्फ रोजगार का आसान रास्ता हैं, बल्कि जड़ें जमाने में तमाम बिचौलिए चंद पैसों के लिए सक्रिय व मददगार हैं। हाल के लिए में पकड़े जा रहे बांग्लादेशियों से पूछताछ में जो खुलासे हुए हैं उससे पता चला कि बांग्लादेश से वेस्ट बंगाल, फिर वहां से आधार कार्ड, जन्म प्रमाण जैसे जरूरी, मगर फेक दस्तावेज के जरिए दिल्ली एनसीआर तक भेजने का ठेका मिलता है। इन कागजों के लिए वेस्ट बंगाल व असम में सक्रिय दलाल फर्जी तरीके से तैयार करते हैं। जांच एजेंसी इन कागजों को देख तो लेती हैं, मगर असली नकली का फर्क करने के लिए चैक करने की जहमत नहीं उठातीं। अवैध को ‘वैध’ बनाने में एजेंट मददगारजांच ऐजेंसी से जुड़े सूत्र ने बताया कि बीते दिनों ओडिशा में बांग्लादेशी नागरिकों से जुड़े घुसपैठिए रैकेट पकड़ा गया। पूछताछ में जो नई जानकारी सामने आई, लगभग सभी शहरों के लिए लागू हो रही है। पता चला है कि हर एक घुसपैठिया ओडिशा पहुंचने के लिए एजेंटों को लगभग 20 हजार से 25,000 रुपये का भुगतान करता है। पता चलता है कि इन घुसपैठियों को पूरे सिस्टेमेटिक तरीके से भारत में लाया जाता है। उनके रहने को वैध बनाने के लिए आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र सहित नकली पहचान दस्तावेज हासिल करने में रैकेट से जुड़े एजेंट, बिचौलिए उनकी चंद पैसों में मदद करते हैं। सूत्रों से पता चला कि सुरक्षा खामियों का फायदा उठाकर घुसपैठिए कथित तौर पर अंधेरे में सीमा पार कर अलग अलग राज्यों में फैल जाते हैं। जांच से यह भी पता चला है कि इस रैकेट के पीछे एक संगठित नेटवर्क काम कर रहा है, जो कई राज्यों में अवैध एंट्री से लेकर उनकी बसावट की सुविधा कराता है। यह नेटवर्क दिल्ली, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, असम, कर्नाटक, ओडीशा व अन्य राज्यों में सक्रिय है। कुछ जगहों पर नहीं है बॉर्डर लाइन क्लियरजांच ऐजेंसी से जुड़े सूत्र ने बताया कि पश्चिम बंगाल के दिनहाटा ब्लॉक-1 के पास धारा नदी पड़ती है। यह एरिया घुसपैठ के लिए सबसे बदनाम है। बांग्लादेश से भारत और भारत से बांग्लादेश पार करने में यह ऐजेंट सौदा करते हैं। ज्यादातर लेन-देन रुपए और टका में होता है। चूंकि दोनों देशों के बीच की बॉर्डर लाइन क्लियर नहीं है। घुसपैठ केवल सीमा तक ही सीमित नहीं रहती। एजेंटों की अहम भूमिका है जो घुसपैठियों को भारतीय शहरों में बसने में मदद करते हैं। दूसरे एजेंट बॉर्डर एरिया से बहुत दूर होते हैं। ये एजेंट नकली दस्तावेज और जॉब तक का ठेका लेते हैं। महिलाएं बनीं मेड, पुरुष बने सस्ते श्रमिकदिल्ली एनसीआर समेत देश भर में अवैध बांग्लादेशी कुछ समय बिताने और यहां भाषा को जल्द सीखने के साथ शुरुआत कूड़ा बीनने से करते हैं। खुद को असम और बंगाल का निवासी बताकर गाड़ी पोंछने, प्रेस करने, कूड़ा बीनने, दुकानों पर छोटे-मोटे काम करने लग जाते हैं। धीरे-धीरे अपने आसपास रिक्शा चलाने, ट्रांसजेंडर बनकर लाल बत्ती, मेट्रो स्टेशन के बाहर वसूली करते हैं। समय के साथ वोट बैंक का हिस्सा बन जाते हैं। वहीं, इनके परिवार की महिलाएं घरेलू नौकरानी, पार्लर व अन्य छोटे छोटे कामों में लग जाती हैं। सुरक्षा ऐजेंसी से जुड़े सूत्र के मुताबिक, अवैध दस्तावेजों से यह देश के अलग अलग हिस्सों में अपनी पहचान बदलकर ‘सेट’ हो चुके हैं। ज्यादा कमाई के चक्कर में धीरे-धीरे दिल्ली के ड्रग्स माफिया के लिए ये पैडलर भी बन जाते हैं। ये तस्करों का ड्रग्स दिल्ली के अलग अलग हिस्सों में पहुंचाते हैं। इनकी बस्तियों में यह हर समय उपलब्ध भी रहता है। इसके साथ ही ये हत्या, लूट, डकैती, चोरी जैसी आपराधिक वारदातों में अक्सर पकड़े जा रहे हैं। ...तो पुलिस क्या कर रही?अवैध बांग्लादेशियों की पहचान के लिए तमाम नाकाम कोशिशों के बाद अब दिल्ली पुलिस ने धांसू तोड़ निकाला है। एक सीनियर पुलिस अफसर ने कहा कि अलग-अलग जिलों में टीमें संदिग्धों के मोबाइल या दूसरी डिवाइस के लिंक, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर उनके अकाउंट्स को ट्रैक कर रही हैं। उन अकाउंट्स की निगरानी की जा रही हैं, जिनके फॉलोअर्स अधिकतर बांग्लादेश से हैं या वे फॉलो करते हैं। उसकी पहचान को सिलेक्ट कर अलग मॉनिटरिंग लिस्ट में डालते हैं। उसके बाद उन लोगों के पोस्ट, लाइक कमेंट से पता चल रहा है कि वे बांग्लादेश में चल रही गतिविधियों से लेकर वहां किस किस के संपर्क में हैं। मॉनिटरिंग से ही आईएमओ ऐप का पता चल रहा है। जिसमें अधिकतर बांग्लादेशी सुरक्षा एजेंसियों की निगाह से बचने को उस ऐप को यूज कर रहे हैं। ऐप के जरिए बांग्लादेश में अपने परिवार, जानकार, रिश्तेदार, दोस्तों, फॉलोअर्स के संपर्क में हैं। उन लोगों को संदेह आधार पर पूछताछ, दस्तावेज का पता करके पहचान की जा रही है। हाल ही नॉर्थ वेस्ट जिले में अधिकतर बांग्लादेशी इसी डिजिटल तकनीक से पकड़े गए।
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