नई दिल्ली: नीदरलैंड की चिप निर्माता नेक्सपीरिया ने अपने चीनी असेंबली प्लांट को वेफर्स की सप्लाई रोक दी है। यह फैसला 26 अक्टूबर को लिया गया। इसकी वजह चीनी प्लांट के स्थानीय प्रबंधन का भुगतान की शर्तों का पालन न करना बताया गया है। यह कदम दुनियाभर की ऑटोमोबाइल कंपनियों के लिए टेंशन का विषय बन गया है। भारत भी इसमें शामिल है। इससे चिप सप्लाई में और कमी आ सकती है। वेफर का मतलब एक खास तरह के पतले गोल टुकड़े से होता है जो चिप बनाने की नींव होता है। नेक्सपीरिया पर नीदरलैंड सरकार का नियंत्रण हो गया है। उसकी मूल कंपनी चीन की है। डच सरकार को डर था कि कहीं कंपनी की तकनीक चीन न इस्तेमाल कर ले।
नेक्सपीरिया ने अपने ग्राहकों को भेजे एक पत्र में बताया कि वेफर्स की सप्लाई को इसलिए रोका गया है क्योंकि स्थानीय प्रबंधन ने तय भुगतान की शर्तों को पूरा नहीं किया। यह पत्र 29 अक्टूबर का है। इस पर नेक्सपीरिया के अंतरिम सीईओ स्टीफन टिलगर के हस्ताक्षर हैं। कंपनी ने कहा कि जब तक ये भुगतान की शर्तें पूरी नहीं हो जातीं तब तक वेफर्स की सप्लाई फिर से शुरू नहीं की जा सकती। नेक्सपीरिया अपने ग्राहकों को सप्लाई जारी रखने के लिए वैकल्पिक समाधान ढूंढ रही है।
कैसे पेचीदा हो गया मामला?
यह मामला तब और पेचीदा हो गया जब नेक्सपीरिया की चीनी यूनिट ने स्थानीय ग्राहकों को चिप्स की सप्लाई फिर से शुरू कर दी। लेकिन, एक नई शर्त के साथ। अब सभी बिक्री के लिए भुगतान चीनी युआन में ही करना होगा। पहले ये लेनदेन अमेरिकी डॉलर जैसी विदेशी मुद्राओं में होते थे। नेक्पीरिया की मूल कंपनी विंगटेक टेक्नोलॉजी चीनी कंपनी है। डच सरकार ने विंगटेक से 30 सितंबर को नेक्सपीरिया का कंट्रोल अपने हाथ में ले लिया था। उसने कंपनी के चीनी सीईओ को भी हटा दिया था। नीदरलैंड को डर था कि विंगटेक उनकी तकनीक का गलत इस्तेमाल कर सकती है।
नेक्सपीरिया नीदरलैंड में बड़ी मात्रा में चिप्स बनाती है। इनका इस्तेमाल ऑटोमोबाइल और कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री में खूब होता है। नीदरलैंड में बने करीब 70% चिप्स चीन में पैक किए जाते हैं। इनमें से ज्यादातर को डिस्ट्रीब्यूटरों को बेचा जाता है। नेक्सपीरिया ने अपने पत्र में कहा है कि वे जितनी देर तक व्यावसायिक रूप से संभव था, शिपमेंट जारी रखते रहे। लेकिन, अब फ्रंट-एंड साइटों से सप्लाई का मौजूदा प्रवाह जारी रखना उचित नहीं है।
नेक्सपीरिया ने यह भी साफ किया है कि इस फैसले का मतलब यह नहीं है कि वह डॉन्गुआन स्थित अपने प्लांट या पूरे चीनी बाजार से पीछे हट रही है। कंपनी इस समस्या का समाधान निकालने के लिए प्रतिबद्ध है। पत्र में यह भी बताया गया है कि नेक्सपीरिया विंगटेक से वित्तीय रूप से स्वतंत्र है। उससे वह कोई पूंजी नहीं लेती है।
कब लिया नेक्सपीरिया को कंट्रोल करने का फैसला?नेक्सपीरिया के प्रवक्ता ने इस पत्र की पुष्टि की है। लेकिन, आगे कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। नेक्सपीरिया चाइना और विंगटेक ने भी इस मामले पर तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। नीदरलैंड सरकार के एक प्रवक्ता ने वेफर सप्लाई रोकने के बारे में सवालों को नेक्सपीरिया पर टाल दिया। उन्होंने कहा कि यह एक कॉर्पोरेट फैसला था और सरकारी हस्तक्षेप का उद्देश्य उत्पादन क्षमता को बनाए रखना था, न कि कंपनी के रोजमर्रा के कामकाज में दखल देना। प्रवक्ता ने यह भी बताया कि नीदरलैंड यूरोपीय सरकारों, यूरोपीय आयोग और चीनी अधिकारियों के साथ मिलकर रचनात्मक समाधान निकालने के लिए बातचीत कर रहा है।
डच सरकार की ओर से नेक्सपीरिया का नियंत्रण अपने हाथ में लेने का फैसला तब आया जब अमेरिका का दबाव बढ़ रहा था। विंगटेक को पहले ही प्रतिबंधित निर्यात सूची में डाल दिया गया था। हालांकि, डच अधिकारियों का कहना है कि शासन संबंधी कमियों को इस फैसले का मुख्य कारण बताया गया। 4 अक्टूबर को चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने नेक्सपीरिया को चीन से चिप्स निर्यात करने से रोक दिया था।
उद्योग निकायों ने इस स्थिति के उत्पादन पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव को लेकर चिंता जताई है। स्टेलैंटिस ने गुरुवार को कहा कि उसने स्थिति की निगरानी के लिए एक 'वॉर रूम' स्थापित किया है। जापानी कार निर्माता निसान ने कहा कि फिलहाल उनके पास नवंबर के पहले सप्ताह तक बिना किसी रुकावट के चलने के लिए पर्याप्त चिप्स हैं।
सूत्रों के मुताबिक, नेक्सपीरिया के कुछ ऐसे उत्पाद जिनकी कीमत कुछ चीनी सेंट हुआ करती थी, अब दो या तीन युआन तक पहुंच गई है। यह उनकी मूल कीमत से दस गुना से भी ज्यादा है। यह चिप की बढ़ती कीमतों और सप्लाई की कमी का एक और संकेत है।
नेक्सपीरिया ने अपने ग्राहकों को भेजे एक पत्र में बताया कि वेफर्स की सप्लाई को इसलिए रोका गया है क्योंकि स्थानीय प्रबंधन ने तय भुगतान की शर्तों को पूरा नहीं किया। यह पत्र 29 अक्टूबर का है। इस पर नेक्सपीरिया के अंतरिम सीईओ स्टीफन टिलगर के हस्ताक्षर हैं। कंपनी ने कहा कि जब तक ये भुगतान की शर्तें पूरी नहीं हो जातीं तब तक वेफर्स की सप्लाई फिर से शुरू नहीं की जा सकती। नेक्सपीरिया अपने ग्राहकों को सप्लाई जारी रखने के लिए वैकल्पिक समाधान ढूंढ रही है।
कैसे पेचीदा हो गया मामला?
यह मामला तब और पेचीदा हो गया जब नेक्सपीरिया की चीनी यूनिट ने स्थानीय ग्राहकों को चिप्स की सप्लाई फिर से शुरू कर दी। लेकिन, एक नई शर्त के साथ। अब सभी बिक्री के लिए भुगतान चीनी युआन में ही करना होगा। पहले ये लेनदेन अमेरिकी डॉलर जैसी विदेशी मुद्राओं में होते थे। नेक्पीरिया की मूल कंपनी विंगटेक टेक्नोलॉजी चीनी कंपनी है। डच सरकार ने विंगटेक से 30 सितंबर को नेक्सपीरिया का कंट्रोल अपने हाथ में ले लिया था। उसने कंपनी के चीनी सीईओ को भी हटा दिया था। नीदरलैंड को डर था कि विंगटेक उनकी तकनीक का गलत इस्तेमाल कर सकती है।
नेक्सपीरिया नीदरलैंड में बड़ी मात्रा में चिप्स बनाती है। इनका इस्तेमाल ऑटोमोबाइल और कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री में खूब होता है। नीदरलैंड में बने करीब 70% चिप्स चीन में पैक किए जाते हैं। इनमें से ज्यादातर को डिस्ट्रीब्यूटरों को बेचा जाता है। नेक्सपीरिया ने अपने पत्र में कहा है कि वे जितनी देर तक व्यावसायिक रूप से संभव था, शिपमेंट जारी रखते रहे। लेकिन, अब फ्रंट-एंड साइटों से सप्लाई का मौजूदा प्रवाह जारी रखना उचित नहीं है।
नेक्सपीरिया ने यह भी साफ किया है कि इस फैसले का मतलब यह नहीं है कि वह डॉन्गुआन स्थित अपने प्लांट या पूरे चीनी बाजार से पीछे हट रही है। कंपनी इस समस्या का समाधान निकालने के लिए प्रतिबद्ध है। पत्र में यह भी बताया गया है कि नेक्सपीरिया विंगटेक से वित्तीय रूप से स्वतंत्र है। उससे वह कोई पूंजी नहीं लेती है।
कब लिया नेक्सपीरिया को कंट्रोल करने का फैसला?नेक्सपीरिया के प्रवक्ता ने इस पत्र की पुष्टि की है। लेकिन, आगे कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। नेक्सपीरिया चाइना और विंगटेक ने भी इस मामले पर तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। नीदरलैंड सरकार के एक प्रवक्ता ने वेफर सप्लाई रोकने के बारे में सवालों को नेक्सपीरिया पर टाल दिया। उन्होंने कहा कि यह एक कॉर्पोरेट फैसला था और सरकारी हस्तक्षेप का उद्देश्य उत्पादन क्षमता को बनाए रखना था, न कि कंपनी के रोजमर्रा के कामकाज में दखल देना। प्रवक्ता ने यह भी बताया कि नीदरलैंड यूरोपीय सरकारों, यूरोपीय आयोग और चीनी अधिकारियों के साथ मिलकर रचनात्मक समाधान निकालने के लिए बातचीत कर रहा है।
डच सरकार की ओर से नेक्सपीरिया का नियंत्रण अपने हाथ में लेने का फैसला तब आया जब अमेरिका का दबाव बढ़ रहा था। विंगटेक को पहले ही प्रतिबंधित निर्यात सूची में डाल दिया गया था। हालांकि, डच अधिकारियों का कहना है कि शासन संबंधी कमियों को इस फैसले का मुख्य कारण बताया गया। 4 अक्टूबर को चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने नेक्सपीरिया को चीन से चिप्स निर्यात करने से रोक दिया था।
उद्योग निकायों ने इस स्थिति के उत्पादन पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव को लेकर चिंता जताई है। स्टेलैंटिस ने गुरुवार को कहा कि उसने स्थिति की निगरानी के लिए एक 'वॉर रूम' स्थापित किया है। जापानी कार निर्माता निसान ने कहा कि फिलहाल उनके पास नवंबर के पहले सप्ताह तक बिना किसी रुकावट के चलने के लिए पर्याप्त चिप्स हैं।
सूत्रों के मुताबिक, नेक्सपीरिया के कुछ ऐसे उत्पाद जिनकी कीमत कुछ चीनी सेंट हुआ करती थी, अब दो या तीन युआन तक पहुंच गई है। यह उनकी मूल कीमत से दस गुना से भी ज्यादा है। यह चिप की बढ़ती कीमतों और सप्लाई की कमी का एक और संकेत है।
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