अगली ख़बर
Newszop

बिहार में 'फ्रीबीज' से कैसे निकलेगी खजाने की हवा? नीतीश-तेजस्वी के वादों पर पाई-पाई का हिसाब, बजट भी हो जाएगा फेल

Send Push
पटना/दिल्ली: बिहार में NDA और महागठबंधन के बीच जारी एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ के बीच, 14 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों में कोई भी एलायंस जीते, राज्य की कमजोर राजकोषीय स्थिति (Fiscal Position) खतरनाक होने वाली है। राजकोषीय रूप से बिहार पहले से ही पंजाब, हिमाचल प्रदेश और असम के साथ सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों की कैटेगरी में है। लगभग एक दशक से लागू शराबबंदी (Prohibition) का मतलब है कि इसमें उस चीज की कमी है, जो अन्य राज्यों के लिए राजस्व का एक स्थिर स्रोत रही है।


'रेवड़ी वादों' की कीमत जानिएविधानसभा चुनावों की तैयारी में NDA सरकार ने अपने बजटीय व्यय (Budgetary Expenditure) पर और बोझ डाला है। वृद्धावस्था पेंशन को ₹400 से बढ़ाकर ₹1,100 प्रति माह करना, मुख्यमंत्री रोजगार योजना के तहत 75 लाख महिलाओं को ₹10,000 देना, और हर घर के लिए प्रति माह 125 यूनिट तक की मुफ्त बिजली योजना, कई अन्य लाभों के अलावा है।



लेकिन ये सभी, विपक्षी महागठबंधन के लगभग 2.76 करोड़ परिवारों में से प्रत्येक को एक सरकारी नौकरी देने के वादे के सामने फीके पड़ जाते हैं। बिहार में 20 लाख सरकारी कर्मचारी हैं और एक अनुमान के अनुसार, इस अभूतपूर्व वादे को लागू करने में भारी खर्च आएगा, जो ₹10 लाख करोड़ से अधिक होगा। ये बिहार के कुल बजट का कई गुना है। RJD के तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन ने महिलाओं को प्रति माह ₹2,500 और प्रति माह 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने की भी घोषणा की है।


आमदनी अठन्नी...खर्चा रुपैया!पिछले 10 वर्षों (2013-14 से 2022-23) में विकासात्मक लक्ष्यों (Developmental Goals) और आर्थिक समेकन (Economic Consolidation) को प्राप्त करने में राज्यों के प्रदर्शन पर रैंकिंग जारी किए बिना, CAG ने हाल ही में जारी अपनी तरह के पहले अध्ययन में पंजाब, हिमाचल प्रदेश, बिहार और असम सहित राजकोषीय रूप से कमजोर राज्यों के बारे में चेतावनी दी है।


उनके अनुमानित प्रतिबद्ध व्यय (Committed Expenditure) (वेतन, पेंशन और ब्याज भुगतान पर खर्च) उनके कुल बजटीय व्यय के 35-70% के बीच हैं। राजकोषीय घाटा लगभग 5-6% है। राज्य का अपना कर राजस्व (SOTR) राजस्व प्राप्तियों के 20-30% से कम है। राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की तुलना में देनदारी (Liability) 45% जितनी अधिक है। उभरती हुई ये स्थिति इन राज्यों के भविष्य के स्वास्थ्य पर एक बहुत ही निराशाजनक तस्वीर पेश करती है, जो कम से कम निकट भविष्य में आर्थिक सुधार की संभावना को खराब करती है। संघीय लेखा परीक्षक (Federal Auditor) ने उल्लेख किया है कि सभी पूर्वोत्तर राज्यों की स्थिति और भी खराब है, उनका प्रतिबद्ध व्यय 70% की सीमा में है और SOTR 20% से कम है।


'फ्रीबीज' के चक्कर में सब गुड़-गोबरमहाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, ओडिशा और तेलंगाना स्पेक्ट्रम के दूसरी ओर हैं- सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्यों में उनकी SOTR राजस्व प्राप्तियों के 65-80% जितनी अधिक है। प्रतिबद्ध व्यय 30-40% जितना कम है। राजकोषीय घाटा 0.7-2% जितना कम है। GSDP की तुलना में कुल देनदारी 15-18% जितनी कम है। कई राज्य आर्थिक रूप से केंद्र सरकार पर निर्भर हैं और ऋण और अग्रिम (Loans & Advances) के अलावा कर विचलन (Tax Devolution) और अनुदान (Grants) के रूप में पैसा प्राप्त करते हैं। उदाहरण के लिए, 2022-23 के दौरान 28 राज्यों की राजस्व प्राप्तियां ₹35 लाख करोड़ से अधिक थीं, इसमें से राज्यों का अपना और गैर-कर राजस्व, राजस्व प्राप्तियों का 56% था, बाकी केंद्रीय करों में हिस्सेदारी (27%) और अनुदान (17%) से आया।


राज्य का अपना कर राजस्व, SGST शराब और ईंधन पर VAT से आता है, जो एकीकृत GST व्यवस्था से बाहर हैं। खनिजों पर रॉयल्टी के साथ राज्य के सार्वजनिक उपक्रमों (PSUs) से प्राप्त लाभांश और ब्याज मुख्य रूप से राज्यों के गैर-कर राजस्व में शामिल होते हैं। CAG के अनुसार, 2022-23 में, हरियाणा, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक सहित छह राज्यों में SOTR उनकी राजस्व प्राप्तियों का 69-80% था। अगर, पूर्वोत्तर राज्यों को बाहर कर दिया जाए, तो बिहार, हिमाचल और पश्चिम बंगाल उन राज्यों में शामिल हैं जिनकी SOTR 28-44% सबसे कम है।


इस वजह से नहीं भर रहा बिहार का खजाना!बिहार सरकार को कम टैक्स मिलने में सबसे बड़ी बाधा पलायन भी है। ज्यादातर गुणवत्ता वाले लोग (Quality People) रोजी-रोजगार या बेहतर भविष्य के लिए राज्य के बाहर का रूख कर लेते हैं। ई-श्रम पोर्टल पंजीकरण के अनुसार, सितंबर 2024 तक 2 करोड़ 90 लाख से अधिक श्रमिकों ने ई-श्रम पोर्टल पर खुद को बिहार से प्रवासी मजदूर के रूप में पंजीकृत कराया है। ये तादाद केवल रजिस्टर्ड असंगठित मजदूरों की है। बिहार में लगभग 3 करोड़ लोगों के राज्य से बाहर काम करने का अनुमान लगाया जाता है, जो राज्य के लगभग हर चार वयस्कों में से एक है।


वहीं, बिहार जाति सर्वेक्षण (2022-23) के अनुसार, लगभग 53 लाख परिवार और 2.65 करोड़ लोग प्रवासी के रूप में बिहार के बाहर रहते हैं। ये विशाल संख्या मुख्य रूप से रोजगार के अवसरों की कमी के कारण है। राजनीतिक दलों के 'सुशासन' बनाम 'नौकरी' के वादों के बीच, बिहार से बाहर रहने वाले ये प्रवासी मतदाता राज्य का भविष्य तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। साथ ही अगर उनको अपने राज्य में रोजगार मिल जाए तो सरकार का खजाना भरने में भी मददगार साबित हो सकते हैं।
न्यूजपॉईंट पसंद? अब ऐप डाउनलोड करें