नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में मंगलवार को हुए ट्रेन हादसे में रेलवे प्रशासन की गंभीर लापरवाही सामने आई है। जांच में खुलासा हुआ है कि जिस लोको पायलट को मेमू लोकल ट्रेन की जिम्मेदारी दी गई थी, वह रेलवे के अनिवार्य साइकोलॉजिकल टेस्ट में फेल हो गया था। इसके बावजूद अधिकारियों ने उसे ट्रेन चलाने की अनुमति दे दी। पैसेंजर ट्रेन चलाने के लिए इस साइको टेस्ट को पास करना जरूरी है।
4 नवंबर को गेवरारोड स्टेशन पर मेमू लोकल और मालगाड़ी की टक्कर में लोको पायलट विद्यासागर समेत 11 लोगों की मौत हो गई थी। प्रारंभिक जांच में ऑटो सिग्नलिंग सिस्टम की खामियों और तकनीकी कमियों को हादसे का कारण माना गया, लेकिन अब यह साफ हो गया है कि मानव लापरवाही भी बड़ी वजह थी। कमिशन ऑफ रेलवे सेफ्टी (CRS) की जांच में 6 नवंबर को दस से अधिक अधिकारियों और कर्मचारियों से पूछताछ की गई।
जून में टेस्ट में हुए थे फेलजानकारी के मुताबिक लोको पायलट विद्यासागर 19 जून को हुए साइकोलॉजिकल टेस्ट में फेल हो गए थे। इसके बावजूद रेलवे अधिकारियों ने नियमों को नजरअंदाज करते हुए उन्हें पैसेंजर ट्रेन का संचालन सौंप दिया। रेलवे नियमों के अनुसार, मालगाड़ी चलाने वाले चालक को पैसेंजर ट्रेन में प्रमोशन देने से पहले साइको टेस्ट पास करना अनिवार्य होता है। इस टेस्ट में चालक का मानसिक संतुलन, तुरंत निर्णय लेने की क्षमता, आपात स्थिति में किस प्रकार के कदम उठाए जाएं आदि का आकलन किया जाता है।
रेलवे प्रशासन को थी जानकारीविद्यासागर के असफल होने की जानकारी रेलवे प्रशासन को पहले से थी, इसलिए उनके साथ सहायक चालक रश्मि राज को भी नियुक्त किया गया था। इसके बावजूद, उन्हें ट्रेन चलाने की जिम्मेदारी सौंपना गंभीर चूक मानी जा रही है। अब रेलवे संरक्षा आयुक्त ने इस मामले से जुड़े 19 कर्मचारियों के बयान दर्ज करने की प्रक्रिया शुरू की है। पूछताछ रेल मंडल कार्यालय में जारी है और शेष कर्मचारियों से आज शुक्रवार को बयान लिए जाएंगे।
फाइल मंजूरी पर भी सवालडीआरएम स्तर पर प्रमोशन की प्रक्रिया के तहत विद्यासागर को लोको पायलट बनाया गया था। यह फाइल वरिष्ठ मंडल विद्युत अभियंता और परिचालन विभाग से होकर गुजरी थी, जहां से अंतिम मंजूरी दी गई। सवाल यह है कि साइको टेस्ट में असफल चालक की फाइल को मंजूरी कैसे मिल गई?
4 नवंबर को गेवरारोड स्टेशन पर मेमू लोकल और मालगाड़ी की टक्कर में लोको पायलट विद्यासागर समेत 11 लोगों की मौत हो गई थी। प्रारंभिक जांच में ऑटो सिग्नलिंग सिस्टम की खामियों और तकनीकी कमियों को हादसे का कारण माना गया, लेकिन अब यह साफ हो गया है कि मानव लापरवाही भी बड़ी वजह थी। कमिशन ऑफ रेलवे सेफ्टी (CRS) की जांच में 6 नवंबर को दस से अधिक अधिकारियों और कर्मचारियों से पूछताछ की गई।
जून में टेस्ट में हुए थे फेलजानकारी के मुताबिक लोको पायलट विद्यासागर 19 जून को हुए साइकोलॉजिकल टेस्ट में फेल हो गए थे। इसके बावजूद रेलवे अधिकारियों ने नियमों को नजरअंदाज करते हुए उन्हें पैसेंजर ट्रेन का संचालन सौंप दिया। रेलवे नियमों के अनुसार, मालगाड़ी चलाने वाले चालक को पैसेंजर ट्रेन में प्रमोशन देने से पहले साइको टेस्ट पास करना अनिवार्य होता है। इस टेस्ट में चालक का मानसिक संतुलन, तुरंत निर्णय लेने की क्षमता, आपात स्थिति में किस प्रकार के कदम उठाए जाएं आदि का आकलन किया जाता है।
रेलवे प्रशासन को थी जानकारीविद्यासागर के असफल होने की जानकारी रेलवे प्रशासन को पहले से थी, इसलिए उनके साथ सहायक चालक रश्मि राज को भी नियुक्त किया गया था। इसके बावजूद, उन्हें ट्रेन चलाने की जिम्मेदारी सौंपना गंभीर चूक मानी जा रही है। अब रेलवे संरक्षा आयुक्त ने इस मामले से जुड़े 19 कर्मचारियों के बयान दर्ज करने की प्रक्रिया शुरू की है। पूछताछ रेल मंडल कार्यालय में जारी है और शेष कर्मचारियों से आज शुक्रवार को बयान लिए जाएंगे।
फाइल मंजूरी पर भी सवालडीआरएम स्तर पर प्रमोशन की प्रक्रिया के तहत विद्यासागर को लोको पायलट बनाया गया था। यह फाइल वरिष्ठ मंडल विद्युत अभियंता और परिचालन विभाग से होकर गुजरी थी, जहां से अंतिम मंजूरी दी गई। सवाल यह है कि साइको टेस्ट में असफल चालक की फाइल को मंजूरी कैसे मिल गई?
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