नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दुनिया भर में व्यापार के नियमों को बदल रहे हैं। उन्होंने कई देशों पर ऊंचे टैक्स (टैरिफ) लगा दिए हैं। ऐसे में बाकी दुनिया, खासकर एशिया और प्रशांत क्षेत्र के देशों को इन टैक्सों से निपटने के लिए रास्ते खोजने होंगे। अभी तक एशिया-प्रशांत के देशों पर ट्रंप के टैक्स का ज्यादा असर नहीं पड़ा है, लेकिन आने वाले समय में यह बढ़ सकता है। हालांकि, इन टैक्सों के असर को कम करने के तरीके भी मौजूद हैं। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ( IMF ) की एक नई रिपोर्ट में इस क्षेत्र के देशों के लिए चेतावनी दी गई है और साथ ही ऐसे उपाय भी बताए गए हैं जिनसे जोखिमों को कम किया जा सकता है।
क्या कहती है आईएमएफ की रिपोर्ट?रिपोर्ट के अनुसार साल 2025 की पहली छमाही में एशिया में आर्थिक विकास अच्छा रहा। इसकी एक वजह यह थी कि देशों ने टैक्स बढ़ने की उम्मीद में पहले ही ज्यादा निर्यात कर दिया था। इसके अलावा टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में तेजी भी एक कारण थी। इस दौरान, मौद्रिक और वित्तीय नीतियों में ढील दी गई, जिससे घरेलू मांग बढ़ी। साथ ही, दुनिया भर में वित्तीय हालात आसान थे और अमेरिकी डॉलर का मूल्य भी कम हो रहा था।
लेकिन, पहली छमाही में जो उम्मीद से बेहतर नतीजे आए, वे शायद दूसरी छमाही में न दिखें। रिपोर्ट बताती है कि साल 2025 की दूसरी छमाही में एशिया में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) की वृद्धि दर थोड़ी कम हो सकती है। इससे साल 2025 में सालाना वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो साल 2024 में 4.6 प्रतिशत थी। साल 2026 में यह वृद्धि दर और घटकर 4.1 प्रतिशत हो सकती है। इसका मुख्य कारण अमेरिका द्वारा लगाए गए ऊंचे टैक्सों का बढ़ता नकारात्मक असर और मध्यम अवधि में विकास की क्षमता पर आने वाली बाधाएं हैं। रिपोर्ट के अनुसार, इस क्षेत्र के लिए जोखिमों का पलड़ा नकारात्मक तरफ झुका हुआ है।
आईएमएफ ने क्या बताए उपाए?यह समझना महत्वपूर्ण है कि ट्रंप प्रशासन द्वारा लगाए गए टैरिफ वैश्विक व्यापार पर एक बड़ा प्रभाव डाल रहे हैं। आईएमएफ के मुताबिक एशिया और प्रशांत क्षेत्र के देशों को इन चुनौतियों का सामना करने के लिए अपनी व्यापार नीतियों में बदलाव करने की आवश्यकता है। क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा देना और गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करना इन देशों के लिए महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं। भारत जैसे देशों के लिए, संरचनात्मक सुधारों के साथ-साथ व्यापार उदारीकरण पर ध्यान केंद्रित करना भविष्य के आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है।
ईयू का दिया उदाहरणरिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया यूरोपीय संघ की तरह व्यापक-आधारित व्यापार को अपनाकर लाभान्वित हो सकता है। वर्तमान में द्विपक्षीय समझौतों पर ध्यान केंद्रित करने से नियमों का दोहराव और असंगत मानक (inconsistent standards) पैदा होते हैं। गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करने से काफी लाभ हो सकता है।
आईएमएफ के एशिया और प्रशांत विभाग के निदेशक कृष्णा श्रीनिवासन ने कहा कि क्षेत्रीय व्यापार एकीकरण बढ़ने से एशिया की जीडीपी मध्यम अवधि में 1.4% तक बढ़ सकती है। वहीं दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन (ASEAN) की अर्थव्यवस्थाओं की जीडीपी में 4% तक उछाल आ सकता है।
भारत को क्या करना चाहिए?एक इंटरव्यू में श्रीनिवासन ने कहा था कि भारत के पास पहले से ही एक मजबूत मैक्रोइकोनॉमिक नीति ढांचा है और वह राजकोषीय अनुशासन बनाए हुए है, जबकि मुद्रास्फीति (inflation) कम हो रही है। लेकिन भारत को मजबूत संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता है और वर्तमान व्यापारिक तनाव व्यापार उदारीकरण के लिए एक अवसर प्रदान करते हैं।
श्रीनिवासन ने कहा कि वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए भारत को अपने स्तर को बढ़ाना होगा और अधिक प्रतिस्पर्धी बनना होगा। उन्होंने कहा कि लचीले श्रम कानून जरूरी हैं। इनकी घोषणा की गई है, लेकिन कार्यान्वयन अनिश्चित बना हुआ है। नियामक सुव्यवस्थीकरण भी आवश्यक है, क्योंकि कई नियम बिना किसी स्पष्ट उद्देश्य के मौजूद हैं। दिवालियापन ढांचे और न्यायिक क्षमता को मजबूत करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
क्या कहती है आईएमएफ की रिपोर्ट?रिपोर्ट के अनुसार साल 2025 की पहली छमाही में एशिया में आर्थिक विकास अच्छा रहा। इसकी एक वजह यह थी कि देशों ने टैक्स बढ़ने की उम्मीद में पहले ही ज्यादा निर्यात कर दिया था। इसके अलावा टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में तेजी भी एक कारण थी। इस दौरान, मौद्रिक और वित्तीय नीतियों में ढील दी गई, जिससे घरेलू मांग बढ़ी। साथ ही, दुनिया भर में वित्तीय हालात आसान थे और अमेरिकी डॉलर का मूल्य भी कम हो रहा था।
लेकिन, पहली छमाही में जो उम्मीद से बेहतर नतीजे आए, वे शायद दूसरी छमाही में न दिखें। रिपोर्ट बताती है कि साल 2025 की दूसरी छमाही में एशिया में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) की वृद्धि दर थोड़ी कम हो सकती है। इससे साल 2025 में सालाना वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो साल 2024 में 4.6 प्रतिशत थी। साल 2026 में यह वृद्धि दर और घटकर 4.1 प्रतिशत हो सकती है। इसका मुख्य कारण अमेरिका द्वारा लगाए गए ऊंचे टैक्सों का बढ़ता नकारात्मक असर और मध्यम अवधि में विकास की क्षमता पर आने वाली बाधाएं हैं। रिपोर्ट के अनुसार, इस क्षेत्र के लिए जोखिमों का पलड़ा नकारात्मक तरफ झुका हुआ है।
आईएमएफ ने क्या बताए उपाए?यह समझना महत्वपूर्ण है कि ट्रंप प्रशासन द्वारा लगाए गए टैरिफ वैश्विक व्यापार पर एक बड़ा प्रभाव डाल रहे हैं। आईएमएफ के मुताबिक एशिया और प्रशांत क्षेत्र के देशों को इन चुनौतियों का सामना करने के लिए अपनी व्यापार नीतियों में बदलाव करने की आवश्यकता है। क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा देना और गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करना इन देशों के लिए महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं। भारत जैसे देशों के लिए, संरचनात्मक सुधारों के साथ-साथ व्यापार उदारीकरण पर ध्यान केंद्रित करना भविष्य के आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है।
ईयू का दिया उदाहरणरिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया यूरोपीय संघ की तरह व्यापक-आधारित व्यापार को अपनाकर लाभान्वित हो सकता है। वर्तमान में द्विपक्षीय समझौतों पर ध्यान केंद्रित करने से नियमों का दोहराव और असंगत मानक (inconsistent standards) पैदा होते हैं। गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करने से काफी लाभ हो सकता है।
आईएमएफ के एशिया और प्रशांत विभाग के निदेशक कृष्णा श्रीनिवासन ने कहा कि क्षेत्रीय व्यापार एकीकरण बढ़ने से एशिया की जीडीपी मध्यम अवधि में 1.4% तक बढ़ सकती है। वहीं दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन (ASEAN) की अर्थव्यवस्थाओं की जीडीपी में 4% तक उछाल आ सकता है।
भारत को क्या करना चाहिए?एक इंटरव्यू में श्रीनिवासन ने कहा था कि भारत के पास पहले से ही एक मजबूत मैक्रोइकोनॉमिक नीति ढांचा है और वह राजकोषीय अनुशासन बनाए हुए है, जबकि मुद्रास्फीति (inflation) कम हो रही है। लेकिन भारत को मजबूत संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता है और वर्तमान व्यापारिक तनाव व्यापार उदारीकरण के लिए एक अवसर प्रदान करते हैं।
श्रीनिवासन ने कहा कि वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए भारत को अपने स्तर को बढ़ाना होगा और अधिक प्रतिस्पर्धी बनना होगा। उन्होंने कहा कि लचीले श्रम कानून जरूरी हैं। इनकी घोषणा की गई है, लेकिन कार्यान्वयन अनिश्चित बना हुआ है। नियामक सुव्यवस्थीकरण भी आवश्यक है, क्योंकि कई नियम बिना किसी स्पष्ट उद्देश्य के मौजूद हैं। दिवालियापन ढांचे और न्यायिक क्षमता को मजबूत करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
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