ढाका/इस्लामाबाद: पाकिस्तान नौसेना का युद्धपोत (PNS सैफ) 1971 के बाद पहली बार बांग्लादेश के बंदरगाह पर पहुंचा है। इससे पहले 1971 में आखिरी बार कोई पाकिस्तानी युद्धपोत बांग्लादेश पहुंचा था। PNS सैफ का बांग्लादेश के बंदरगाह पर पहुंचने की इस घटना ने दक्षिण एशिया की राजनीति को गरमा दिया है। पाकिस्तान नौसेना प्रमुख एडमिरल नवीन अशरफ रविवार को ढाका पहुंचे, जहां उन्होंने बांग्लादेश के थलसेना प्रमुख जनरल वाकर-उज-जमान और नौसेना प्रमुख एडमिरल एम नजमुल हसन से मुलाकात की।
इससे ठीक एक दिन पहले पाकिस्तानी युद्धपोत PNS सैफ दक्षिण-पूर्वी बंदरगाह चट्टोग्राम पहुंचा था, जहां उसने "गुडविल विजिट" के नाम पर चार दिन का पड़ाव डाला है। पाकिस्तान नौसेना ने बयान जारी कर कहा है कि यह यात्रा "ढाका के साथ समुद्री सहयोग बढ़ाने और ऐतिहासिक रिश्तों को फिर से जिंदा करने की उसकी प्रतिबद्धता" को दिखाती है। लेकिन डिफेंस एक्सपर्ट्स का मानना है कि ये दौरा सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि इसके पीछे पाकिस्तान नौसेना की बंगाल की खाड़ी में फिर से घुसपैठ करने की बड़ी साजिश छिपी हो सकती है।
बांग्लादेश के बंदरगाह पर क्यों पहुंचा पाकिस्तानी युद्धपोत?
डिफेंस एक्सपर्ट्स के मुताबिक, दरअसल 1971 के बाद से पाकिस्तान की नौसैनिक मौजूदगी इस क्षेत्र से लगभग खत्म हो चुकी थी। अब ढाका के साथ बढ़ती नजदीकी के जरिए इस्लामाबाद शायद चट्टोग्राम या मोंगला जैसे बंदरगाहों पर लॉजिस्टिक सपोर्ट या नेवल बेस सुविधा हासिल करने की कोशिश कर रहा है। इससे पाकिस्तान को हिंद महासागर के पूर्वी हिस्से में एक नया रणनीतिक ठिकाना मिल सकता है। इससे ना सिर्फ भारत की नौसेना की निगरानी क्षमता को चुनौती मिलेगा, बल्कि चीन की "स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स" रणनीति के तहत एक नई कड़ी भी जोड़ी जा सकती है।
पिछले साल अगस्त में शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद पाकिस्तान ने बांग्लादेश के साथ फिर से रिश्ते जोड़ने शुरू कर दिए हैं। बांग्लादेश में फिलहाल मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार काम कर रही है, जिसने पाकिस्तान से सैन्य संबंध बनाने शुरू कर दिए हैं। पिछले दिनों पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के सीनियर अधिकारी मेजर जनरल शाहिद आमिर और बाद में जनरल साहिर शामशाद मिर्जा ने भी ढाका का दौरा किया था। पाकिस्तानी सेना और बांग्लादेशी सैन्य नेतृत्व के बीच लगातार हो रही इन बैठकों को रक्षा सहयोग की बहाली के संकेत के रूप में देखा जा रहा है। वहीं, PNS सैफ की चट्टोग्राम में मौजूदगी को एक्सपर्ट पाकिस्तान की तरफ से बंगाल की खाड़ी में फिर से पैर जमाने की एक कोशिश के तौर पर देख रहे हैं।
भारत के लिए चिंता की बात क्यों हो सकती है?
पाकिस्तान की नौसेना के युद्धपोत का बांग्लादेश पहुंचना भारत के लिए असहज करने वाला है। ऐसा इसलिए क्योंकि बंगाल की खाड़ी ना सिर्फ भारत की पूर्वी नौसैनिक कमान का क्षेत्र है, बल्कि अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के जरिए भारत की इंडो-पैसिफिक रणनीति का अहम केंद्र भी है। ऐसे में अगर पाकिस्तान इस इलाके में कोई स्थायी नौसैनिक लॉजिस्टिक पॉइंट स्थापित करने में कामयाब हो जाता है, तो यह भारत की समुद्री सुरक्षा पर सीधा असर डाल सकता है। डिफेंस एक्सपर्ट्स ये भी मान रहे हैं कि ऐसा चीन के कहने पर किया जा रहा हो और ये असल में चीन की स्ट्रैटजी हो, क्योंकि बांग्लादेशी बंदरगाह पर पाकिस्तान के पहुंचने का मतलब चीन का ही पहुंचना है। ऐसे में हो सकती है कि अगली रणनीति म्यांमार में भी सैन्य पहुंच का विस्तार कर चीन, भारत के पूर्वी मोर्चे पर दबाव और बढ़ा सके।
इससे ठीक एक दिन पहले पाकिस्तानी युद्धपोत PNS सैफ दक्षिण-पूर्वी बंदरगाह चट्टोग्राम पहुंचा था, जहां उसने "गुडविल विजिट" के नाम पर चार दिन का पड़ाव डाला है। पाकिस्तान नौसेना ने बयान जारी कर कहा है कि यह यात्रा "ढाका के साथ समुद्री सहयोग बढ़ाने और ऐतिहासिक रिश्तों को फिर से जिंदा करने की उसकी प्रतिबद्धता" को दिखाती है। लेकिन डिफेंस एक्सपर्ट्स का मानना है कि ये दौरा सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि इसके पीछे पाकिस्तान नौसेना की बंगाल की खाड़ी में फिर से घुसपैठ करने की बड़ी साजिश छिपी हो सकती है।
बांग्लादेश के बंदरगाह पर क्यों पहुंचा पाकिस्तानी युद्धपोत?
डिफेंस एक्सपर्ट्स के मुताबिक, दरअसल 1971 के बाद से पाकिस्तान की नौसैनिक मौजूदगी इस क्षेत्र से लगभग खत्म हो चुकी थी। अब ढाका के साथ बढ़ती नजदीकी के जरिए इस्लामाबाद शायद चट्टोग्राम या मोंगला जैसे बंदरगाहों पर लॉजिस्टिक सपोर्ट या नेवल बेस सुविधा हासिल करने की कोशिश कर रहा है। इससे पाकिस्तान को हिंद महासागर के पूर्वी हिस्से में एक नया रणनीतिक ठिकाना मिल सकता है। इससे ना सिर्फ भारत की नौसेना की निगरानी क्षमता को चुनौती मिलेगा, बल्कि चीन की "स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स" रणनीति के तहत एक नई कड़ी भी जोड़ी जा सकती है।
पिछले साल अगस्त में शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद पाकिस्तान ने बांग्लादेश के साथ फिर से रिश्ते जोड़ने शुरू कर दिए हैं। बांग्लादेश में फिलहाल मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार काम कर रही है, जिसने पाकिस्तान से सैन्य संबंध बनाने शुरू कर दिए हैं। पिछले दिनों पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के सीनियर अधिकारी मेजर जनरल शाहिद आमिर और बाद में जनरल साहिर शामशाद मिर्जा ने भी ढाका का दौरा किया था। पाकिस्तानी सेना और बांग्लादेशी सैन्य नेतृत्व के बीच लगातार हो रही इन बैठकों को रक्षा सहयोग की बहाली के संकेत के रूप में देखा जा रहा है। वहीं, PNS सैफ की चट्टोग्राम में मौजूदगी को एक्सपर्ट पाकिस्तान की तरफ से बंगाल की खाड़ी में फिर से पैर जमाने की एक कोशिश के तौर पर देख रहे हैं।
भारत के लिए चिंता की बात क्यों हो सकती है?
पाकिस्तान की नौसेना के युद्धपोत का बांग्लादेश पहुंचना भारत के लिए असहज करने वाला है। ऐसा इसलिए क्योंकि बंगाल की खाड़ी ना सिर्फ भारत की पूर्वी नौसैनिक कमान का क्षेत्र है, बल्कि अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के जरिए भारत की इंडो-पैसिफिक रणनीति का अहम केंद्र भी है। ऐसे में अगर पाकिस्तान इस इलाके में कोई स्थायी नौसैनिक लॉजिस्टिक पॉइंट स्थापित करने में कामयाब हो जाता है, तो यह भारत की समुद्री सुरक्षा पर सीधा असर डाल सकता है। डिफेंस एक्सपर्ट्स ये भी मान रहे हैं कि ऐसा चीन के कहने पर किया जा रहा हो और ये असल में चीन की स्ट्रैटजी हो, क्योंकि बांग्लादेशी बंदरगाह पर पाकिस्तान के पहुंचने का मतलब चीन का ही पहुंचना है। ऐसे में हो सकती है कि अगली रणनीति म्यांमार में भी सैन्य पहुंच का विस्तार कर चीन, भारत के पूर्वी मोर्चे पर दबाव और बढ़ा सके।
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