झारखंड में शिक्षा जगत से जुड़ी एक अहम पहल सामने आई है। झारखंड आफिसर्स, टीचर्स, इंप्लाइज फेडरेशन के नेतृत्व में झारखंड राज्य माध्यमिक शिक्षक संघ ने राज्य के शिक्षा सचिव उमाशंकर सिंह से मुलाकात कर दिशोम गुरु शिबू सोरेन की जीवनी को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग की।
शिक्षक संघ का कहना है कि शिबू सोरेन न केवल झारखंड आंदोलन के प्रणेता रहे, बल्कि उन्होंने आदिवासी समाज के अधिकारों और सम्मान की रक्षा के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। ऐसे में उनकी जीवनी बच्चों तक पहुंचना बेहद जरूरी है, ताकि आने वाली पीढ़ियां उनके संघर्षों और उपलब्धियों से प्रेरणा ले सकें।
बैठक के दौरान शिक्षक संघ के पदाधिकारियों ने कहा कि शिबू सोरेन का जीवन संघर्ष झारखंडी अस्मिता और पहचान से जुड़ा हुआ है। उन्होंने सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक स्तर पर आदिवासी समाज की आवाज बुलंद की। संघ ने यह भी तर्क दिया कि जैसे महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों की जीवनी पाठ्यक्रम का हिस्सा है, वैसे ही राज्य के महान नेताओं को भी स्थान मिलना चाहिए।
संघ के प्रतिनिधियों ने शिक्षा सचिव उमाशंकर सिंह को ज्ञापन सौंपते हुए कहा कि स्कूली शिक्षा में शिबू सोरेन की जीवनी शामिल होने से बच्चों को झारखंड के इतिहास, परंपरा और गौरव के बारे में जानकारी मिलेगी। उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में स्थानीय नायकों और जननायकों पर कम फोकस है, जबकि छात्रों को अपनी जड़ों से जोड़ने के लिए यह बेहद जरूरी है।
शिक्षा सचिव उमाशंकर सिंह ने शिक्षक संघ की मांग को गंभीरता से सुना और आश्वासन दिया कि इस विषय पर विभागीय स्तर पर विचार किया जाएगा। उन्होंने कहा कि बच्चों को अपने क्षेत्र और राज्य के महान व्यक्तित्वों से अवगत कराना शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है।
ज्ञात हो कि दिशोम गुरु शिबू सोरेन का नाम झारखंड की राजनीति और समाज में बेहद सम्मान के साथ लिया जाता है। वे न केवल झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक रहे बल्कि लंबे समय तक जनता की आवाज बनकर राज्य की राजनीति को नई दिशा दी। आदिवासी अधिकारों, जल-जंगल-जमीन की लड़ाई और सामाजिक न्याय की दिशा में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।
शिक्षक संघ की इस पहल को झारखंड की सांस्कृतिक धरोहर और शिक्षा प्रणाली को जोड़ने की दिशा में एक सकारात्मक कदम माना जा रहा है। आने वाले समय में यदि यह मांग पूरी होती है तो स्कूली बच्चे शिबू सोरेन के व्यक्तित्व और उनके संघर्षों से न केवल परिचित होंगे, बल्कि उनसे प्रेरणा लेकर समाज और राज्य के लिए योगदान देने की भावना भी विकसित कर सकेंगे।
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