दुनिया भर में जेल का नाम सुनते ही एक डर सा पैदा हो जाता है, लेकिन जापान में बुजुर्गों के बीच इसका मतलब कुछ और ही होता जा रहा है। यहां के कई बुजुर्ग जानबूझकर अपराध कर रहे हैं ताकि वे जेल जा सकें। ये सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन यह एक गंभीर सामाजिक समस्या बनती जा रही है।
क्यों कर रहे हैं बुजुर्ग अपराध?जापान में कई बुजुर्ग अपनी मर्जी से छोटे-मोटे अपराध कर रहे हैं। उनका मकसद जेल में जाना है, ना कि कानून से भागना।
कारण?
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बुजुर्गों की उपेक्षा: परिवारों से दूरी और भावनात्मक अलगाव।
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अकेलापन और देखभाल की कमी: समाज में बुजुर्गों के लिए सहारा कम होता जा रहा है।
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मुफ्त की सुविधाएं: जेल में खाना-पीना, मेडिकल सुविधा और देखभाल मुफ्त में मिलती है।
जापान की कुछ जेलों में अब खासतौर पर बुजुर्गों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
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जेल में बुजुर्गों को मेडिकल सपोर्ट मिलता है।
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सुरक्षाकर्मी डायपर बदलने, खाना परोसने और शारीरिक देखभाल तक की जिम्मेदारी निभाते हैं।
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यहां बुजुर्गों को एक सम्मानजनक जीवन और सामाजिक जुड़ाव मिलता है।
ऐसे में कई बुजुर्ग जेल को खुद के लिए एक बेहतर विकल्प मानने लगे हैं।
आंकड़ों पर एक नजर-
1997 में हर 20 अपराधियों में से 1 बुजुर्ग था।
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आज की तारीख में हर 5 में से 1 अपराधी बुजुर्ग है।
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जापान की कुल जनसंख्या करीब 12.68 करोड़ है, जिसमें से 3.5 करोड़ से ज्यादा लोग 65 साल से ऊपर हैं।
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पिछले 2 सालों में करीब 2500 बुजुर्गों को जेल की सजा हो चुकी है।
इसका सीधा मतलब है कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ अपराध के आंकड़ों में भी एक अजीब ट्रेंड देखने को मिल रहा है।
समाज के लिए चेतावनीये ट्रेंड सिर्फ जापान के लिए ही नहीं, बल्कि उन सभी देशों के लिए एक चेतावनी है, जहां बुजुर्गों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
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परिवारों का बिखराव,
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आर्थिक निर्भरता,
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भावनात्मक खालीपन,
इन सभी कारणों से बुजुर्गों को ऐसा कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ रहा है।
बुजुर्गों के लिए मजबूत सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था।
ओल्ड एज होम की गुणवत्ता और संख्या में सुधार।
परिवार और समाज की जिम्मेदारी: बुजुर्गों को अकेला न छोड़ें।
सरकारी योजनाएं: जो उन्हें आत्मनिर्भर और सुरक्षित बना सकें।
जापान में बुजुर्गों द्वारा जानबूझकर अपराध करना एक सामाजिक विफलता का संकेत है। यह सिर्फ आंकड़ों की कहानी नहीं है, बल्कि उन चेहरों की दास्तान है जिन्हें समाज ने धीरे-धीरे अकेला कर दिया। ऐसे में जरूरी है कि हम अपने देश में भी समय रहते ऐसे मुद्दों पर ध्यान दें, ताकि हमारे बुजुर्ग गरिमा और स्नेह के साथ जीवन जी सकें — जेल की दीवारों के भीतर नहीं, बल्कि परिवार की चारदीवारी में।
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