गायत्री एक ही आदिशक्ति है, किन्तु जब उसका प्रयोग भिन्न-भिन्न प्रयोजनों के लिए किया जाता है, तो उसके नाम और रूप में अन्तर आ जाता है। कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता है कि वे एक-दूसरे से भिन्न हैं। विचारशील लोग जानते हैं कि बिजली एक ही है। प्रयोजन और उपयोग में भेद होने के कारण उसके नाम और रूप में भी भेद आ जाता है और ऐसा प्रतीत होता है कि वे भिन्न हैं। किन्तु ऐसा नहीं है, तत्वदर्शी इसमें भी एकता का अनुभव करते हैं। गायत्री ईश्वरीय चेतना का नाम है, वह न तो स्त्री है और न ही पुरुष। फिर भी उसे माता और जननी कहा गया है। इसे पढ़कर कुछ जिज्ञासा होती है, किन्तु इसमें कुछ भी गलत नहीं है। गायत्री महाशक्ति के स्वरूप और रहस्य को समझने के बाद इस भेद का भेद स्पष्ट हो जाता है। उसे माता का स्वरूप मानने से गायत्री उपासना कुछ सरल हो जाती है, इसीलिए शास्त्रकार ने उस आदिशक्ति को माता का रूप दिया है।
जिस प्रकार वट वृक्ष की सम्पूर्ण विशालता उसके छोटे से बीज में समाहित होती है, उसी प्रकार वेदों में ज्ञान-विज्ञान का विस्तृत वर्णन गायत्री मंत्र में बीज रूप में मिलता है। भारतीय धर्म में प्रचलित उपासना पद्धतियों में गायत्री सर्वश्रेष्ठ है। इसे सनातन माना गया है। इसका अवलंबन लेकर ही देवता, ऋषि, मनीषी आध्यात्मिक उन्नति के पथ पर आगे बढ़े हैं। हमारा प्राचीन इतिहास गौरवशाली है। इस गौरव और गरिमा का श्रेय हमारे पूर्वजों द्वारा अर्जित आत्मशक्ति को जाता है। कहने की आवश्यकता नहीं कि इस दिव्य प्राप्ति में गायत्री महामंत्र का सर्वोच्च स्थान है।
पुराणों में गायत्री महाशक्ति को ब्रह्मा की पत्नी बताया गया है। पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा की दो पत्नियाँ थीं, एक गायत्री और दूसरी सावित्री। गायत्री का अर्थ है चेतन जगत में कार्यरत शक्ति। सावित्री का अर्थ है भौतिक जगत को संचालित करने वाली शक्ति। विभिन्न प्रकार के वैज्ञानिक आविष्कार और उपकरण सावित्री शक्ति की कृपा के प्रतीक हैं। गायत्री वह शक्ति है जो जीवों में विभिन्न प्रकार की प्रतिभाओं, विशेषताओं और महानताओं के रूप में परिलक्षित होती है। जो इस शक्ति का उचित उपयोग करने का विज्ञान जानता है, वह उससे वैसा ही लाभ प्राप्त करता है जैसा भौतिक जगत के वैज्ञानिक अपनी प्रयोगशालाओं, मशीनों और कारखानों के माध्यम से प्राप्त करते हैं। भारतीय दार्शनिकों ने इस ब्रह्म चेतना के अस्तित्व को सुदूर अतीत में ही समझ लिया था और उस शक्ति का मानव जीवन में उपयोग करने की एक व्यवस्थित प्रक्रिया बनाकर जीवों के तुच्छ अस्तित्व को इतनी महान स्थिति में परिवर्तित कर दिया था कि वे स्वयं ब्रह्म बन सकते थे।
इस विज्ञान का नाम 'अध्यात्म' रखा गया। जिस प्रक्रिया से तुच्छ दृश्यमान अणु आत्मा विभु बन सकती है, नर से नारायण बन सकती है, परम आत्मा, परमात्मा बन सकती है, उस ज्ञान का नाम अध्यात्म या ब्रह्म विद्या रखा गया। गायत्री का नाम 'गय' के आधार पर रखा गया है। संस्कृत में 'गय' का अर्थ है जीवन। वह तत्व या शक्ति जो जीवन को शक्ति प्रदान करती है और उसकी रक्षा करती है, उसे गायत्री मंत्र कहते हैं। जीवन का अर्थ है साहस, दृढ़ संकल्प और पराक्रम। संसार में जितने भी लोग आगे बढ़े हैं, उन सभी में कोई न कोई गुण रहा हो या न रहा हो, शिक्षा रही हो या न रही हो, शारीरिक शक्ति रही हो या न रही हो, लेकिन एक चीज अवश्य रही है - अच्छे कार्यों के लिए साहस।
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