भोपाल, 11 अप्रैल . उज्जैन की पवित्र धरती पर 2000 के दशक की शुरुआत की एक अनोखी सांस्कृतिक पहल की शुरुआत सम्राट विक्रमादित्य महामंचन के रूप में हुई. यह महानाट्य मंचन केवल एक ऐतिहासिक पात्र का स्मरण नहीं था, बल्कि एक ऐसे युग की पुनर्प्रतिष्ठा थी जिसे भारतीय संस्कृति, न्याय, और नीति का प्रतीक माना जाता है. इस मंचन की सबसे रोचक बात यह रही कि इसमें स्वयं डॉ. मोहन यादव ने सम्राट महेन्द्रादित्य (विक्रमादित्य के पिता) के जीवंत किया था.
महानाट्य के मंचन के समय किसी ने सोचा भी नहीं था कि रंगमंच पर उतरने वाला यह युवक भविष्य में वास्तविक रूप में मध्य प्रदेश के विक्रमादित्य की तरह एक नेतृत्वकर्ता, एक सांस्कृतिक अभिभावक और जनमानस का प्रतिनिधि के रूप में प्रतिष्ठित होगा. डॉ. यादव का यह सांस्कृतिक और साहित्यिक प्रेम ही उन्हें सत्ता के शीर्ष तक ले आया. सत्ता में आने के बाद भी उनका यह रुझान केवल मंचन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने महानाट्य के मंचन को सामाजिक चेतना और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का माध्यम बनाया.
प्राधिकरण से प्रारंभ हुई विक्रमदर्शिता
जनसम्पर्क अधिकारी क्रांतिदीप अलूने ने शुक्रवार को जानकारी देते हुए बताया कि मुख्यमंत्री डॉ. यादव जब उज्जैन विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष बने, उन्होंने विकास को केवल अधोसंरचनात्मक निर्माण तक सीमित नहीं रखा. उन्होंने सम्राट विक्रमादित्य की दृष्टि से उज्जैन शहर को एक ऐसे नगर के रूप में देखा जो इतिहास, आस्था और आधुनिकता का संगम बने. उनकी पहल पर शहर में चार दिशाओं में भव्य प्रवेश द्वार निर्मित किए गए, जो चार युगों के प्रतीक हैं. यह कार्य न केवल स्थापत्य की दृष्टि से अभिनव था, बल्कि सांस्कृतिक चेतना को जागृत करने वाला भी था. उज्जैन को देश का पहला ऐसा शहर बनने का गौरव प्राप्त हुआ, जिसमें दिशा-प्रेरित प्रवेश द्वारों से संस्कृति का स्वागत हुआ.
विक्रम विश्वविद्यालय को नई पहचान
मुख्यमंत्री डॉ. यादव का अगला महत्वपूर्ण कार्य सम्राट विक्रमादित्य के नाम से स्थापित विक्रम विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाना रहा. उन्होंने विश्वविद्यालय में न केवल शोध और शैक्षणिक गुणवत्ता को बढ़ावा देने की योजना बनाई गई, बल्कि सम्राट विक्रमादित्य के साहित्य, न्याय दर्शन, और सांस्कृतिक मूल्यों को नयी पीढ़ी तक पहुंचाने की दिशा में भी विशेष प्रयास प्रारंभ किए गए.
लाल किले से देशव्यापी मंचन की ओर
अब जब डॉ. यादव सत्ता और संस्कृति दोनों के मध्य सेतु बन चुके हैं, उन्होंने अपने पुराने सांस्कृतिक अभियान को उत्थान के एक नए सोपान पर ले जाने का संकल्प लिया है. उनके नेतृत्व में टीम अब सम्राट विक्रमादित्य महानाट्य के महामंचन को देशभर में करने के लिए तत्पर हैं. इससे सम्राट विक्रमादित्य के जीवन और दर्शन पर आधारित यह महानाट्य लाल किले जैसे ऐतिहासिक स्थल पर किया जाकर राष्ट्रीय गौरव और सांस्कृतिक धरोहर को पुनर्स्थापित कर सांसकृतिक उत्थान का नया आयाम स्थापित करेगा.
सम्राट विक्रमादित्य केवल इतिहास के पात्र नहीं हैं, वे भारतीय मानस के आदर्श पुरुष हैं. डॉ. मोहन यादव ने उन्हें सुशासन-प्रेरणा में बदल दिया है. उनका यह अभियान केवल उज्जैन या मध्यप्रदेश तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे भारत में सांस्कृतिक चेतना की लौ जलाने वाला है. जब लाल किले की प्राचीर पर विक्रमादित्य की गाथा गूंजेगी, तब यह केवल एक नाट्य मंचन नहीं होगा. यह भारतीय अस्मिता का उत्सव होगा.
तोमर
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