पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत में कई ऐसी कहानियां सामने आई हैं, जो लोगों के दिलों को छू रही हैं। इनमें से एक है डबाया राम की कहानी। कभी पाकिस्तान की संसद में अपनी आवाज बुलंद करने वाले डबाया राम आज भारत के हरियाणा की गलियों में कुल्फी और आइसक्रीम बेचकर जीवनयापन कर रहे हैं। उनकी यह यात्रा संघर्ष, उम्मीद और नई शुरुआत की ऐसी मिसाल है, जो हर किसी को प्रेरित करती है।
बेनजीर भुट्टो के दौर में था रुतबा
डबाया राम की कहानी उस समय की है, जब वे पाकिस्तान में बेनजीर भुट्टो की सरकार में सांसद थे। उस दौर में उनका रुतबा और सम्मान दोनों ही अपने चरम पर था। लेकिन हिंदू परिवार से ताल्लुक रखने के कारण उन्हें पाकिस्तान में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। सामाजिक और धार्मिक भेदभाव ने उनके जीवन को मुश्किल बना दिया। आखिरकार, साल 2000 में उन्होंने अपने परिवार के साथ भारत आने का फैसला किया। यह फैसला आसान नहीं था, लेकिन उनके दिल में एक बेहतर भविष्य की उम्मीद थी।
भारत में नई जिंदगी की तलाश
भारत आने के बाद डबाया राम ने हरियाणा को अपना ठिकाना बनाया। शुरू में वे एक महीने के वीजा पर आए थे, लेकिन समय के साथ उन्होंने अपने वीजा को बढ़वाया। पहले एक साल, फिर पांच साल और अब वे भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर चुके हैं। उनके 34 सदस्यों वाले परिवार में से छह को नागरिकता मिल चुकी है, जबकि बाकी 28 सदस्य इसका इंतजार कर रहे हैं। इस लंबे इंतजार के बीच उन्होंने कुल्फी बेचने का काम शुरू किया। उनकी मेहनत और लगन ने उन्हें स्थानीय लोगों के बीच सम्मान दिलाया।
आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख
पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने डबाया राम और उनके परिवार को गहरे तक झकझोरा। उन्होंने इस हमले की कड़ी निंदा की और सरकार से आतंकवादियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की। डबाया राम का कहना है, "आतंकवाद को जड़ से खत्म करने के लिए हमें उनके ठिकानों तक पहुंचना होगा।" उनकी यह बात न केवल उनके दृढ़ संकल्प को दर्शाती है, बल्कि भारत के प्रति उनकी निष्ठा को भी उजागर करती है।
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